खाद्य पदार्थों और पेय में अनजाने में मिलाए जा रहे रसायन अब धीरे-धीरे साइलेंट किलर बनते जा रहे हैं। एम्स (नई दिल्ली) के एनाटॉमी विभाग ने विषाक्तता की पहचान और प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए देश की पहली क्लीनिकल इकोटॉक्सिसिटी डायग्नोसिस और शोध सुविधा विकसित की है। इस केंद्र में उन मरीजों की जांच की गई, जिनकी बीमारी का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिल पा रहा था, लेकिन शोध से पता चला कि भारी धातुओं और कीटनाशकों का सेवन उनकी गंभीर स्थिति का मुख्य कारण था।
विषाक्तता और बीमारियों का कनेक्शन
एम्स के शोध में यह पाया गया कि कई रोगियों की बीमारी का कारण आनुवांशिक दोष या दुर्घटनाओं से अधिक विषाक्तता से जुड़ा है। जागरूकता की कमी के कारण लोग अनजाने में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जिनमें खतरनाक रसायन और भारी धातुएं शामिल हैं। इन जहरीले तत्वों का लगातार सेवन शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचा रहा है और दीर्घकालिक बीमारियों को जन्म दे रहा है।
भारी धातुओं का खतरनाक असर
शोध के दौरान कैडमियम, लेड, कॉपर और जिंक जैसी धातुओं और कीटनाशकों के प्रभावों की जांच की गई। रिपोर्ट में यह पाया गया कि ये रसायन शरीर में घुसकर कई गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में शामिल हैं:
- अल्जाइमर रोग
- हार्ट फेलियर (हृदय की विफलता)
- फेफड़ों का कैंसर
- लीवर नेक्रोसिस (यकृत का क्षरण)
- ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का कमजोर होना)
- किडनी फेलियर (गुर्दे की शिथिलता)
- थायरॉइड हार्मोन की कमी
रिपोर्ट: 718 जिलों में गंभीर स्थिति
देशभर में 718 जिलों की जांच के दौरान पाया गया कि कई लोग विषाक्त धातुओं और रसायनों के कारण गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे हैं। इनमें से 386 जिलों में नाइट्रेट प्रदूषण की समस्या सबसे गंभीर पाई गई है। भारी धातुओं और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों की दर बढ़ा रहा है।
नया प्रोटोकॉल जल्द तैयार होगा
अभी तक भारत में भारी धातुओं और रसायनों से बचाव के लिए कोई राष्ट्रीय प्रोटोकॉल नहीं है। देश में अधिकांश नियम और मानक विदेशों से अपनाए गए हैं। एम्स के इस शोध के बाद भारतीय परिस्थितियों के अनुसार डेटा तैयार किया जा रहा है, जिससे देश के लिए एक अनुकूल प्रोटोकॉल बनाया जा सकेगा।
जागरूकता की कमी से बढ़ रहा खतरा
एम्स की क्लीनिकल इकोटॉक्सिसिटी सुविधा के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. ए. शरीफ का कहना है कि अगर लोग जागरूक हो जाएं, तो विषाक्तता से होने वाली बीमारियों के मामलों में कमी लाई जा सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि खाद्य और पेय पदार्थों का सेवन करने से पहले उनकी गुणवत्ता की जांच करना ज़रूरी है। शोध के अनुसार, एम्स में जांच के लिए आए 40% मरीजों में बीमारी का कारण विषाक्तता पाया गया।
अनावश्यक रसायनों और भारी धातुओं का उपयोग धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। सरकार को इन विषाक्त पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण के लिए जल्द से जल्द प्रोटोकॉल तैयार करने की आवश्यकता है। साथ ही, नागरिकों में जागरूकता फैलाकर उन्हें सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अनावश्यक रसायनों और भारी धातुओं का अत्यधिक उपयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए साइलेंट किलर साबित हो रहा है। यह विषाक्तता न केवल हृदय रोग, कैंसर, और किडनी फेलियर जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म दे रही है, बल्कि भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को और बढ़ा सकती है। जागरूकता की कमी के कारण लोग इन खतरों से अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ती जा रही है।
समस्या के समाधान के लिए सरकार को राष्ट्रीय प्रोटोकॉल तैयार कर रसायनों के उपयोग पर कड़ा नियंत्रण लागू करना चाहिए। साथ ही, लोगों को खाद्य और पेय पदार्थों की गुणवत्ता पर ध्यान देने और स्वच्छता से संबंधित आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करना बेहद जरूरी है। जागरूकता और सरकारी कदमों के माध्यम से ही इन खतरनाक रसायनों के प्रभाव को रोका जा सकता है, जिससे समाज को स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में ले जाया जा सके।