अनियोजित शहर नहीं झेल पाएंगे जलवायु परिवर्तन की मार

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया के शहरों पर साफ दिख रहा है, लेकिन खासतौर पर गरीब तबकों के लिए इसका खतरा और भी गंभीर है। दुनिया के कई शहरों का पुराना बुनियादी ढांचा जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को झेलने के लिए तैयार नहीं है। इन शहरों में रहने वाले गरीब लोग अक्सर सबसे संवेदनशील इलाकों में रहते हैं, जिससे वे बाढ़, बीमारियों और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बनते हैं।

जलवायु परिवर्तन और अनियोजित शहरीकरण की समस्या

येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, रेसिलिएंट सिटीज नेटवर्क और द रॉकफेलर फाउंडेशन की एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के चलते शहरों के लिए कई नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। दुनिया की आधी आबादी शहरों में बस चुकी है, और 2050 तक यह आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।

यह अध्ययन 52 देशों के 118 शहरों में किया गया और इसमें 200 शहरी नेताओं का सर्वेक्षण भी शामिल किया गया। रिपोर्ट में खासतौर पर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के शहरों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भारतीय शहर अहमदाबाद, पुणे और सूरत भी इस अध्ययन का हिस्सा रहे हैं।

हरित क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं

रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से हो रहा अनियोजित शहरीकरण शहरों के लिए बड़ी चुनौतियां पेश कर रहा है। दूसरी ओर, हरित क्षेत्र और वन क्षेत्र तेजी से घट रहे हैं, जो शहरों में बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते थे। शहरों का पुराना बुनियादी ढांचा, जो पहले बाढ़, तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सक्षम था, अब जलवायु परिवर्तन के कारण इन समस्याओं से निपटने में अक्षम साबित हो रहा है।

बारिश और बाढ़ की चुनौती

जलवायु परिवर्तन के कारण अब शहरों में प्राकृतिक घटनाएँ भी अप्रत्याशित रूप से हो रही हैं। अगर किसी शहर में एक महीने में 5 इंच बारिश होनी चाहिए, तो अब कई बार यह पूरी बारिश कुछ घंटों में हो जाती है। ऐसे में अगर शहर की जल निकासी व्यवस्था कमजोर है, तो बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है। खासतौर पर पुराने शहरों में इस समस्या का प्रभाव अधिक देखने को मिल रहा है।

स्वास्थ्य पर असर

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के चलते 68.8% शहरों में बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। अत्यधिक गर्मी, बाढ़, और वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की आशंका शहरों में अधिक हो गई है। जिन शहरों में स्वास्थ्य और जलवायु से निपटने के लिए कोई योजना नहीं है, वहां स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

यह साफ है कि शहरों का मौजूदा बुनियादी ढांचा जलवायु परिवर्तन के झटकों को झेलने में असमर्थ है। गरीब और संवेदनशील तबके इन समस्याओं का सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। शहरी नियोजन में हरित क्षेत्रों की सुरक्षा और बेहतर जल निकासी व्यवस्था के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने की ठोस योजनाओं की तत्काल आवश्यकता है। जब तक शहरों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए योजनाएं नहीं बनाई जातीं, तब तक इन समस्याओं से निपटना मुश्किल रहेगा।

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