टायरों के घिसने से निकलने वाला माइक्रोप्लास्टिक और पार्टिकुलेट मैटर स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के ट्रांजिशन टू जीरो पॉल्यूशन इनिशिएटिव के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में हर साल 60 लाख टन टायरों के घिसने से उत्पन्न होने वाले छोटे कण न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि हमारे द्वारा सांस लेने वाली हवा में भी उपस्थित होते हैं।
जलमार्गों और कृषि पर प्रभाव
सड़क पर बहने वाला पानी इन कणों को जलमार्गों के माध्यम से जलाशयों और खेतों में पहुंचा देता है, जिससे कृषि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। यह चिंता का विषय है कि भले ही भविष्य में सभी वाहन जीवाश्म ईंधन के बजाय बिजली से चलने लगें, लेकिन टायरों के घिसने से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण हमारे वातावरण में बना रहेगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रभाव
इलेक्ट्रिक वाहन कार्बन मुक्त परिवहन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन उनकी भारीता के कारण उनके टायर अधिक घिसते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि टायर घिसने से निकलने वाले कणों में पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, बेंज़ोथियाज़ोल, आइसोप्रीन, ज़िंक और लेड जैसी भारी धातुएँ शामिल हैं। ये कण टायर की रबर के छोटे-छोटे टुकड़ों से लेकर नैनोकणों तक होते हैं।
स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
इंपीरियल कॉलेज के लाइफ़ साइंसेज़ विभाग के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. विल पियर्स ने बताया कि टायर का कचरा प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं होता, जिससे यह धीरे-धीरे पर्यावरण में मिल जाता है और अन्य प्रदूषकों के साथ मिलकर हृदय, फेफड़े, शारीरिक विकास, प्रजनन और कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा देता है।
प्रदूषण का अदृश्य खतरा
हालांकि टायरों के घिसाव और विषाक्तता के स्तर को मापने का कोई मानकीकृत तरीका नहीं है, लेकिन यह प्रदूषण धीरे-धीरे खतरनाक रूप लेता जा रहा है। इसे एक अदृश्य दुश्मन कहा जा सकता है। शोधकर्ताओं का तर्क है कि CO2 और अन्य उत्सर्जन में कमी लाने के साथ-साथ टायर प्रदूषण को कम करने और यातायात को स्वच्छ बनाने के लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता है।
इस शोध से स्पष्ट होता है कि टायरों का घिसना एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके समाधान के लिए वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को मिलकर काम करना होगा, ताकि हम एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में बढ़ सकें।
टायरों के घिसने से उत्पन्न होने वाले माइक्रोप्लास्टिक और अन्य जहरीले कणों का प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह न केवल हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी एक अदृश्य खतरा है। इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती संख्या के बावजूद, टायरों के घिसने से होने वाला हानिकारक प्रदूषण एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
शोधकर्ताओं का यह अध्ययन इस बात को उजागर करता है कि टायरों के घिसने से निकलने वाले कण हृदय, फेफड़े और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। ऐसे में, इसे एक अदृश्य दुश्मन मानते हुए, प्रभावी नीतियों और ठोस उपायों की आवश्यकता है, ताकि हम टायर प्रदूषण को कम कर सकें और एक स्वस्थ वातावरण की दिशा में कदम बढ़ा सकें।
सिर्फ CO2 उत्सर्जन को कम करना ही पर्याप्त नहीं है; हमें टायरों के घिसने से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी। वैज्ञानिक अनुसंधान और सार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं, जिससे एक सुरक्षित और स्वच्छ भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।
Source- amar ujala