तीसरा विश्व युद्ध जितनी जल्दी हो उतना अच्छा – आचार्य रजनीश

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हम बड़े दुख भरे हृदय से मुझे आपको बताना है कि आज हमारे पास जो आदमी है, वह इस योग्य नहीं है कि उसके लिए लड़ा जाए। टूटे हुए सपनों, ध्वस्त कल्पनाओं और बिखरी हुई आशाओं के साथ मैं वापस लौटा हूं। जो मैंने देखा वह एक वास्तविकता है, और अपने पूरे जीवन भर जो कुछ मैं मनुष्य के विषय में सोचता रहा, वह केवल उसका मुखौटा था। मैं आपको थोड़े से उदाहरण दूंगा, क्योंकि यदि मैं अपनी पूरी विश्व यात्रा का वर्णन सुनाने लगूं तो इसमें करीब-करीब एक माह लग जाएगा। इसलिए कुछ महत्वपूर्ण बातें ही आपसे कहूंगा, जो कुछ संकेत दे सकें। मुझसे पहले, पूरब से विवेकानंद, रामतीर्थ, कृष्णमूर्ति तथा सैकड़ों अन्य लोग दुनिया भर में गए हैं लेकिन उनमें से एक भी व्यक्ति पूरे विश्व द्वारा इस भांति निंदित नहीं किया गया जिस भांति मैं निंदित किया गया हूं; क्योंकि उन सभी ने राजनीतिज्ञों जैसा व्यवहार किया। जब वे किसी ईसाई देश में होते तो ईसाइयत की प्रशंसा करते और मुस्लिम देश में वे इस्लाम की प्रशंसा करते। स्वभावतः किसी ईसाई देश में यदि पूरब का कोई आदमी, जो कि ईसाई नहीं है, ईसा मसीह की गौतम बुद्ध की तरह प्रशंसा करता है तो ईसाई प्रसन्न होते हैं, अत्यंत प्रसन्न होते हैं। और इनमें से एक भी व्यक्ति ने पश्चिम के एक भी ईसाई को पूरब के जीवन दर्शन में, पूरब की जीवन-शैली में नहीं बदला। इसी दौरान पश्चिम से ईसाई मिशनरी यहां आते रहे और लाखों लोगों को ईसाई बनाते रहे। शायद मैं पहला अकेला व्यक्ति हूं जिसने हजारों युवा शिक्षित, बुद्धिमान पश्चिमी लोगों को पूर्वी चिंतन और शैली में दीक्षित किया। और इससे पश्चिमी धार्मिक व राजनीतिक न्यस्त स्वार्थों को इस कदर धक्का लगा जो अविश्वसनीय है। यदि मैंने स्वयं इसका अनुभव न किया होता तो मैंने भी इस बात पर भरोसा नहीं किया होता। सभी यूरोपीय देशों की एक संसद है, उस संसद ने यह निर्णय लिया है कि मेरा वायुयान यूरोप के किसी हवाई अड्डे पर नहीं उतर सकता। उनके देशों में मेरे प्रवेश का तो अब प्रश्न ही नहीं उठता। यहां तक कि उनके हवाई अड्डों पर ईंधन के लिए भी मेरा वायुयान नहीं उतर सकता और इसका कारण यह बताया गया कि मैं एक खतरनाक आदमी हूं। मुझे यह तर्क समझ में नहीं आता कि वायुयान के लिए ईंधन लेने के 15 मिनट के भीतर मैं किसी को क्या खतरा पहुंचा सकता हूं। मैं रात के 11 बजे इंग्लैंण्ड पहुंचा, पायलट के काम का समय पूरा हो चुका था, और उसे 12 घण्टे के लिए विश्राम करना था। फिर भी वे मुझे हवाई अड्डे पर विश्राम करने की भी अनुमति नहीं दे रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि हवाई अड्डे पर आगे जाने वाले यात्रियों के विश्राम के लिए विशेष सुविधाएं रहती हैं जहां वे कुछ घण्टे विश्राम कर सकते हैं और फिर अपनी यात्रा पर निकल जाते हैं। और मैं इंग्लैंण्ड में प्रवेश नहीं करने वाला हूं। लेकिन उन्होंने कहा कि हमें खेद है, ऊपर से ये आदेश दिए गए हैं कि यह व्यक्ति खतरनाक है। यह व्यक्ति तुम्हारे धर्म को नष्ट कर सकता है। यह व्यक्ति तुम्हारी नैतिकता को मिटा सकता है। इस व्यक्ति को देश में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए। मैंने कहा भी कि मैं तुम्हारे देश में प्रवेश नहीं कर रहा हूं, हवाई अड्डा तो देश नहीं है। और मेरी समझ में नहीं आता कि हवाई अड्डे पर पांच-छह घंटे सोने से मैं किस तरह तुम्हारी नैतिकता को, तुम्हारे धर्म को, तुम्हारी परंपरा को नष्ट कर सकता हूं। और यदि यह संभव है कि एक आदमी हवाई अड्डे पर प्रथम श्रेणी के विश्राम कक्ष में छह घंटे की नींद से ही एक ऐसे धर्म और नैतिकता को नष्ट कर दे जिसका तुम पिछले दो हजार वर्षों से प्रचार करते आ रहे हो तो वह धर्म और नैतिकता इस योग्य है कि उसे नष्ट कर दिया जाए। और दूसरे दिन ही ब्रिटेन की संसद में जब यह प्रश्न पूछा गया कि मुझे क्यों रोका गया तो वही उत्तर मिला कि मैं नैतिकता के लिए, धर्म के लिए, परंपरा के लिए खतरा हूं और आश्चर्य की बात तो यह है कि पूरी संसद में एक आदमी ने भी यह नहीं पूछा कि किस प्रकार आधी रात थक कर सोया हुआ व्यक्ति जो सुबह छह बजे आगे यात्रा पर निकल जाने वाला है, तुम्हारी ईसाइयत को नष्ट कर सकता है, जिसकी शिक्षा तुम पिछले 2000 वर्षों से हर बच्चे को बचपन से ही देते आ रहे हो, उसमें संस्कारित करते आ रहे हो। यदि 2000 वर्षों की शिक्षा छह घंटे में ही नष्ट की जा सकती हो तो फिर तुम्हारी उस शिक्षा में जरूर कुछ दोष होगा। यहां तक कि उन देशों की संसदों ने भी जहां मुझे जाना ही नहीं था यह निर्णय लिया कि मुझे उन देशों में प्रवेश की अनुमति न दी जाए। दक्षिणी अमरीका के एक छोटे-से देश उरुग्वे ने मुझे अनुमति दी, क्योंकि उस देश के राष्ट्रपति मेरी पुस्तकों को पढ़ते रहे हैं, मेरे टेप सुनते रहे हैं। वे एक युवा बुद्धिमान व्यक्ति हैं। उन्होंने मुझे रहने के लिए छह महीने का वीसा दिया। वह मुझसे मिलना चाहते थे। लेकिन जैसे ही मैंने उरुग्वे में प्रवेश किया कि उरुग्वे पर अमरीकी दबाव एकदम बढ़ गया। अमरीकी राष्ट्रपति ने उरुग्वे के राष्ट्रपति को कहा कि यदि मुझे 36 घंटे के अंदर देश के बाहर नहीं निकाला गया तो उन्हें उरूग्वे को अतीत में दिया गया ऋण जो कि करोड़ों डालर है तुरंत चुकाना पड़ेगा। और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उस पर ब्याज की दर कल से ही दोगुनी हो जाएगी। और दूसरी बात यह कि उरुग्वे के साथ करोड़ों डालर के आगामी पांच वर्षों के लिए सहायतार्थ जो समझौते किए गए हैं वे भी रद्द कर दिए जाएंगे। अब आप ही चुनाव करें। आप चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। आपको हमारे सहयोग और इस व्यक्ति के बीच चुनाव करना होगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, मुझे बताया गया कि आंसू-भरी आंखों से उरुग्वे के राष्ट्रपति ने यह कहा कि भगवान के उरुग्वे आगमन से हमें अंतर्दृष्टि मिली है, कम से कम इससे एक बात तो साफ हो गई कि हम स्वतंत्र नहीं हैं। मुझे 36 घंटों के भीतर ही उरुग्वे छोड़ना पड़ा। क्योंकि उरुग्वे जैसे एक छोटे से देश के लिए यह संभव नहीं है कि वह लाखों डालर का ऋण भुगतान कर सके और भविष्य में मिलने वाले ऋणों के बिना काम चला सके। मैंने स्वयं ही उरुग्वे के राष्ट्रपति को का कि आप चिंतित न हों, मुझे आपकी स्थिति का एहसास है। यदि आप मुझे यहां से वापस भेजते हैं तो आपको ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए मैं खुद ही जा रहा हूं ताकि आपको कुछ खराब न लगे। और जैसे ही मैंने उरुग्वे छोड़ा उरुग्वे के राष्ट्रपति को वाशिंग्टन से अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की मुलाकात करने के लिए निमंत्रण दिया गया। अमरीका पहुंचने पर उरुग्वे के राष्ट्रपति का शानदार स्वागत हुआ, और 36 करोड़ डालर का उन्हें शीघ्र ऋण दिया गया जिसके लिए पहले से कोई समझौता नहीं था। यह पुरस्कार था। ऐसा लगाता है कि पुराने ढंग की गुलामी तो मिट चुक है। मानवता राजनैतिक रूप से अब गुलाम नहीं है, लेकिन एक और बड़ी गुलामी, आर्थिक गुलामी प्रवेश कर चुकी है। मैं करीब-करीब पूरी दुनिया में घूमा हूं। हर बार हर देश में एक ही कहानी दोहराई गई…जब तक मैं किसी देश में पहुंचूं कि मेरे पहले ही वहां पहुंच जाता ताकि वे उस देश के राष्ट्रपति से, प्रधान मंत्री से संपर्क कर सकें और उनका खतरे से आगाह कर सकें। उरुग्वे के राष्ट्रपति ने मुझे सूचना दी है कि यह बेहतर होगा कि मैं अपनी विश्व यात्रा रोक दूं, क्योंकि वे मेरे जीवन के विषय में चिंतित हैं। राष्ट्रपति ने बताया कि व्हाइट हाउस में उन्होंने यह सुना कि 5 लाख डालर पर एक हत्यारे को मुझे जान से मारने लिए भाड़े पर लिया गया है। मैं एक अकेला निहत्था आदमी हूं। और पूरे विश्व इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी शक्ति रखने वाला देश एक अकेले निहत्थे आदमी से इतना डरा हुआ है। अमरीकी के एटार्नी जनरल ने समाचार पत्र प्रतिनिधियों से कहा कि वे मेरा नाम भी सुनना नहीं चाहते, वह किसी भी समाचार पत्र व पत्रिका में मेरा चित्र नहीं देखना चाहते हैं, वह यह भी नहीं जानना चाहते कि मैं जीवित हूं या नहीं। मेरा नामोनिशां पूरी तरह मिटा दिया जाना चाहिए। और मैंने अपराध क्या किया है? नहीं, केवल सोच-विचार करना सबसे बड़ा अपराध है, और लोगों को यह दिखाना कि तुम गलत हो सबसे बड़ा अपराध है। ग्रीस के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर मैं ग्रीस में था। मैंने यह निमंत्रण इसलिए स्वीकार किया कि मैं देखना चाहता था कि आखिर वे लोग कौन हैं जिन्होंने सुकरात जैसे व्यक्ति की हत्या कर दी। हमने तो यहां गौतम बुद्ध की पूजा की। और ये दोनों महापुरुष समसामयिक थे। दोनों में एक जैसी प्रखर मेधा थी। दोनों के पास वह चेतना थी जो मनुष्य के अस्तित्व के तल को ऊंचा उठा सके। हमने तो गौतम बुद्ध की पूजा की और ग्रीस ने सुकरात को जहर दे दिया। मैं देखना चाहता था कि ये लोग कैसे हैं। मैं एक माह का वीसा मिला था। और 15 दिन के भीतर ही ग्रीस में आर्चरशिप ने यह घोषणा कर दी कि यदि मुझे ग्रीस से तत्काल बाहर नहीं निकाला गया तो वे, जिस घर में मैं मेहमान था उस घर में मुझे मेरे सभी मित्रों के साथ जीवित जला देंगे। जिस समय पुलिस पहुंची मैं सो रहा था। दो सप्ताह बीत चुके थे और मुझे केवल दो सप्ताह और वहां रहना था। ग्रीस में जो मेरी सचिव थी उसने पुलिस को कहा कि आप प्रतीक्षा कक्ष में बैठें, मैं उन्हें जगा देती हूं। जरा उन्हें मुंह हाथ धो लेने दें, कपड़े बदल लेने दें। लेकिन उन्होंने पांच मिनिट भी इंतजार करने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि वे घर को आग लगा देंगे और यह कि हम अपने साथ डायनामाइट लाए हैं और हम घर को डायनामाइट से उड़ा देंगे। उन्होंने डायनामाइट भी दिखाया। और उन्होंने मेरी सचिव को एक ऊंचे स्थान से पथरीली सड़क पर धक्का देकर गिरा दिया। वे उसे पुलिस की गाड़ी तक बिना किसी गिरफ्तारी के वारंट के, बिना किसी कारण घसीटते हुए ले गए। उसका अपराध सिर्फ इतना था कि उसने उनसे यह कहा था कि कृपया पांच मिनट प्रतीक्षा करें, जरा मैं उनका जगा दूं। मैं अचानक उठा और जो कुछ मैंने देखा उस पर मैं भरोसा नहीं कर सका क्योंकि मैं कभी दुस्वप्न नहीं दुखता हूं। ऐसा लगा कि कि बम विस्फोट हो रहा है, पुलिस ने घर के दरवाजों पर खिड़कियों पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए थे। घर में पत्थर आ रहे थे। मैं भागकर नीचे पहुंचा और पूछा कि आखिर बात क्या है। उन्होंने मुझसे कहा कि आपको इसी क्षण यहां से जाना होगा, क्योंकि आर्थोडाक्स क्रिश्चियन चर्च के आर्चबिशप यह नहीं चाहते कि आप यहां रहें। मैंने कहा, ठीक है। मैं अपनी मर्जी से यहां नहीं आया हूं। मुझे यहां आने का निमंत्रण दिया गया था। यह ग्रीस के राष्ट्रपति का अपमान है और मेरा भी। मुझे तो इस बात का प्रमाण मिल गया है कि तुम ही वे लोग हो, जिन्होंने निश्चय ही सुकरात को जान से मार दिया होगा। क्योंकि मैं यहां केवल अभी दो सप्ताह से ही हूं और मैं कभी इस घर से बाहर नहीं निकला। सुकरात तो पूरे जीवन भर यहां रहा। इन पच्चीस शताब्दियों मैं तुम जरा भी नहीं बदले हो, तुम अभी भी जंगली, दुष्ट हो। मैं पूरी दुनिया में घूमता रहा, एक के बाद एक इसी तरह के अनुभव हुए। सारा लोकतंत्र नकली है। सभी स्वतंत्रता के सिद्धांत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत झूठे हैं। यह आशा कि किसी दिन मनुष्य मानव बनेगा, एक बहुत दूर का तारा मालूम पड़ती है। मैंने हमेशा ही अहिंसा में विश्वास किया है, शांति में विश्वास किया है। लेकिन इस विश्व यात्रा के बाद मुझे यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि अब शांति और अहिंसा में मेरा भरोसा नहीं रहा। मैं तृतीय विश्व युद्ध के खिलाफ था, लेकिन बड़ी ही पीड़ा के साथ मुझे आपसे यह कहना पड़ रहा है कि शायद तृतीय महायुद्ध की जरूरत है। यह मानवता इतनी सड़ी गली है कि इसे नष्ट ही हो जाना चाहिए। कम-से-कम दुनिया का कुरूप आदमियों से तो मुक्त हो जाना चाहिए। मानव-चेतना के विकास के लिए अस्तित्व को कोई और ढंग खोजना होगा। और वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मांड में कम-से-कम 50,000 ग्रह हैं, जहां जीवन है। अतः यदि इस कि सी धरती पर से जीवन विदा हो जाए तो कोई हर्ज नहीं है। इस प्रकार का जीवन मनुष्य जीवन नहीं है। और डारविन बिलकुल गलत है, जब वह कहता है कि आदमी बंदर से विकसित हुआ है। आदमी अभी भी बंदर ही है। शायद वह पेड़ से गिर गया है। उसका विकास नहीं हुआ है, पतन हुआ है। आज से मेरा कार्य कुछ थोड़े से उन व्यक्तियों के लिए होगा, जो ध्यान में, शांति में, मौन में गति करना चाहते हैं। और मैं इस मानवता के लिए और इस ग्रह के लिए सभी आशाएं छोड़ता हूं। यह पृथ्वी गंदे हाथों में है, और इस को बदलना असंभव है, क्योंकि सारी सत्ता इनके पास है। मेरे अपने ही देश में, कल ही जब मैंने हवाई अड्डे में प्रवेश किया तो वहां लिखा था, भारत में आपका स्वागत है। मेरे पास कोई सामान नहीं था। मेरे पास अधिकारियों के सामने घोषित करने योग्य वस्तु नहीं थी। और फिर भी मुझे वहां तीन घंटों तक रुकना पड़ा। और मैंने यह बार-बार यह पूछा भी कि एक भारतीय का यह कैसा स्वागत है। मैं कोई टूरिस्ट नहीं हूं। इस गंदी नौकरशाही ने, इन गंदी सरकारों ने, इन गंदे धर्मों ने एक सुंदर ग्रह को भ्रष्ट कर दिया है। मैंने आपको सिर्फ यह कहने के लिए बुलाया है कि मैंने पूरी तरह निराश हो चुका हूं, मेरे सारे भ्रम टूट गए हैं। अब मैं केवल उन व्यक्तियों के लिए जीऊंगा, जो व्यक्तिगत रूप से विकास करना चाहते हैं, क्योंकि पूरी मानवता के लिए अब कोई भी आशा नहीं है। मैं एक ही आशा करता हूं कि तृतीय महायुद्ध जितनी जल्दी हो उतना अच्छा। हम लोग इस कूड़े-करकट से हाथ धो लें।

– श्री निलय उपाध्याय

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