हर साल जब धान की फसल कटती है, पंजाब और हरियाणा के किसान पराली जलाने लगते हैं, और इसके साथ ही देशभर में वायु प्रदूषण का खतरा मंडराने लगता है। केंद्र और राज्य सरकारें हर बार नई योजनाएं और वादे करती हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी रहती है। इस साल भी, जब अक्टूबर का महीना आया, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 3 अक्टूबर तक इन राज्यों में 315 मामले दर्ज किए गए, लेकिन पराली प्रबंधन के दावे फिर से खोखले साबित हुए हैं।
पराली प्रबंधन: हकीकत या कागजी योजना?
पिछले कुछ सालों में, पराली जलाने से एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। इसे रोकने के लिए पंजाब और हरियाणा ने केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के साथ मिलकर पराली प्रबंधन की योजनाएं बनाई थीं। लेकिन इन योजनाओं का वास्तविक धरातल पर कोई असर नहीं दिख रहा है।
दोनों राज्यों ने किसानों को पराली नष्ट करने के लिए मशीनों और बायो-डीकंपोजर के उपयोग का विकल्प दिया है, ताकि पराली जलाने की जरूरत न पड़े। इसके बावजूद, केंद्र सरकार की ओर से करोड़ों रुपये की वित्तीय मदद मिलने के बाद भी, खेतों में पराली जल रही है। रिपोर्टों के अनुसार, पंजाब को अब तक 1,682 करोड़ रुपये और हरियाणा को 1,082 करोड़ रुपये मिले हैं। इस साल भी, पराली प्रबंधन के लिए पंजाब को 150 करोड़ रुपये और हरियाणा को 75 करोड़ रुपये दिए गए हैं। परंतु इन योजनाओं का क्रियान्वयन जमीन पर कहीं दिखाई नहीं दे रहा।
कस्टमर हायरिंग सेंटर और मशीनें बेकार
पंजाब और हरियाणा की पराली प्रबंधन योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा किसानों को मशीनों के जरिए पराली नष्ट करने में मदद करना था। इसके लिए ‘कस्टमर हायरिंग सेंटर’ बनाए गए, जहाँ से किसान मशीनों को किराए पर ले सकते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इन केंद्रों पर रखी गई ज्यादातर मशीनें अभी तक इस्तेमाल में नहीं लाई गईं हैं। साथ ही, बायो-डीकंपोजर का छिड़काव भी ठीक से शुरू नहीं हुआ है, जिससे पराली को प्राकृतिक तरीके से नष्ट किया जा सके।
पराली जलाने के आंकड़े
केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 3 अक्टूबर तक पंजाब और हरियाणा में कुल 315 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 200 मामले अकेले पंजाब से हैं, जबकि हरियाणा में 115 मामले सामने आए हैं।
पंजाब में इस साल कुल 1.95 करोड़ टन पराली का उत्पादन हुआ, जिसमें से केवल 1.27 करोड़ टन पराली को खेतों में नष्ट करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके अलावा 8 लाख टन पराली को चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाना था और बाकी का उपयोग पैलेट्स और थर्मल पावर प्लांट्स में होना था। इसी तरह, हरियाणा में 81 लाख टन पराली का उत्पादन हुआ है, जिसमें से 33 लाख टन खेतों में नष्ट की जानी थी।
समाधान की खोज में किसान और सरकार
सरकार ने एक समाधान के रूप में किसानों को धान की जगह अन्य फसलों की खेती का सुझाव दिया था, ताकि पराली की समस्या को कम किया जा सके। परन्तु यह योजना भी पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी। पंजाब और हरियाणा के किसान धान की खेती से जुड़े हुए हैं और किसी दूसरी फसल को अपनाने में उनकी रुचि कम दिखी है। इसके चलते पराली का उत्पादन और भी बढ़ गया है।
किसानों का कहना है कि वे मजबूरी में पराली जला रहे हैं, क्योंकि उनके पास पराली को नष्ट करने के लिए पर्याप्त संसाधन और समय नहीं है। वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि पराली प्रबंधन के लिए उन्हें अधिक सहायता प्रदान की जाए।
प्रदूषण और पर्यावरण पर असर
पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण अक्टूबर से दिसंबर तक बढ़ता है, खासकर एनसीआर क्षेत्र में, जहाँ वायु गुणवत्ता पहले ही खराब होती जा रही है। पराली से निकलने वाला धुआं लगभग 40 प्रतिशत वायु प्रदूषण में योगदान करता है, जिससे सांस की बीमारियाँ और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
सरकार द्वारा बनाए गए नियम-कायदों के बावजूद, पराली जलाना रुक नहीं रहा है। जब तक सरकार और किसान इस समस्या का कोई ठोस समाधान नहीं निकालते, तब तक हर साल लाखों लोगों की सेहत पर इस प्रदूषण का असर होता रहेगा। पराली जलाने की समस्या केवल पंजाब और हरियाणा की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इससे होने वाला प्रदूषण न केवल इन राज्यों के लोगों की सेहत पर, बल्कि पड़ोसी राज्यों और एनसीआर क्षेत्र पर भी भारी पड़ रहा है।
सरकार को चाहिए कि पराली प्रबंधन की योजनाओं का सही से क्रियान्वयन हो और किसानों को अधिक सुविधाएँ और विकल्प प्रदान किए जाएं। जब तक यह नहीं होता, तब तक पराली जलाने की यह कड़वी सच्चाई हर साल सामने आती रहेगी और वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ता रहेगा।