गंगा, जो भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रमुख हिस्सा है, आज गंभीर प्रदूषण और जल संकट से जूझ रही है। हरिद्वार में गंगा जल की शुद्धता बी श्रेणी की है, यानी जल नहाने के लिए तो उपयुक्त है, लेकिन पीने के लिए नहीं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की मासिक रिपोर्ट ने इस बात का खुलासा किया है कि हरिद्वार में गंगा जल का गुणवत्तायुक्त स्तर सिर्फ नहाने के लायक है, पर पीने योग्य नहीं।
गंगा जल की गुणवत्ता पर रिपोर्ट
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार, गंगा जल में घुली अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर मानक के अनुसार है, जो जल के प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ हद तक संतोषजनक है। हालांकि, पीने के लिए गंगा जल को शुद्ध करना अत्यंत आवश्यक है।
इसके बावजूद, गंगा जल में गिरने वाले कई नाले, सीवेज और अपशिष्ट का पानी जल की गुणवत्ता को लगातार प्रभावित कर रहा है। जगजीतपुर नाला जैसे प्रमुख नाले का पानी गंगा में गिरने से प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। हरिद्वार में सीवेज शोधन के लिए जल निगम द्वारा 68 एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) का संचालन किया जा रहा है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद गंगा का जल पीने योग्य नहीं बन सका है।
प्रदूषण के कारण
गंगा नदी में गिरने वाले शुद्ध और अनुपचारित सीवेज, औद्योगिक कचरे और धार्मिक कार्यों के दौरान छोड़े गए भारी कचरे से जल प्रदूषण बढ़ रहा है। हरिद्वार में बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर साल गंगा स्नान के लिए आते हैं, और यहां से गंगाजल लेकर जाते हैं। हालांकि, यह कचरा और प्रदूषण गंगा जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे इसका जल मानक के अनुरूप नहीं रहता।
विशाल कुमार, जल निगम के इंजीनियर, बताते हैं कि सिंचाई के महीनों में 50 फीसदी उपचारित सीवेज का पानी किसानों को जाता है, जबकि शेष गंगा में डाल दिया जाता है। जब सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, तो ये जल निकासी गंगा में डाल दिया जाता है, जिससे जल गुणवत्ता प्रभावित होती है।
गंगा जल की वर्तमान स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। गंगा नदी को शुद्ध और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि गंगा जल को पीने योग्य बनाना है तो, गंगा में गिरने वाले नालों का शुद्धिकरण और सीवेज उपचार को प्राथमिकता देनी होगी। इसके साथ ही, धार्मिक श्रद्धालुओं और स्थानीय निवासियों को गंगा के संरक्षण के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। केवल सरकारी प्रयासों से यह समस्या हल नहीं हो सकती, इसके लिए सभी नागरिकों को इस जिम्मेदारी का हिस्सा बनना होगा।
गंगा नदी, जो भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है, आज गंभीर प्रदूषण और जल संकट का सामना कर रही है। हरिद्वार में गंगा जल की गुणवत्ता बी श्रेणी की होने के बावजूद, यह न तो पीने योग्य है और न ही पूरी तरह से स्वच्छ। नालों और सीवेज का पानी गंगा में गिरने से उसकी गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है, जबकि उपचारित सीवेज का पानी भी गंगा में डालना पर्यावरणीय समस्या को और बढ़ा रहा है।
गंगा को शुद्ध और पीने योग्य बनाने के लिए केवल सरकारी प्रयासों से काम नहीं चलेगा, बल्कि यह एक सामूहिक जिम्मेदारी बनानी होगी। श्रद्धालुओं को गंगा के संरक्षण के लिए जागरूक किया जाना चाहिए और साथ ही जल शोधन योजनाओं को और अधिक प्रभावी बनाना जरूरी है। गंगा की स्वच्छता और उसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए हर किसी को मिलकर काम करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे बचाया जा सके।