नई दिल्ली: सिंगापुर की तर्ज पर अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित देश के अन्य हिस्सों में भी अपशिष्ट जल को पीने योग्य बनाने पर काम होगा। केंद्रीय और औद्योगिक इकाइयों के अपशिष्ट जल को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) यह पहल करेगा। इस पहल के साथ-साथ पीने योग्य जल के पुनः उपयोग को लेकर भी जल्द ही सख्त दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। पर्यावरण मंत्री ने हाल ही में हुई एक बैठक में इस पहल के विचार विमर्श भी किया है।
दरअसल, औद्योगिक और न निकले वाले अपशिष्ट जल को शोध कर के लिए बेस्ट एडवांस्ड ट्रीटमेंट प्लांट (सीएटीपी) में इस्तेमाल किया जाएगा। जिससे इस जल को पीने योग्य बनाया जा सके। इस दिशा में विभिन्न प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल होगा जिसमें मुख्यत: मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर (एमबीआर), रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) और अल्ट्रावायलेट (यूवी) डिसइंफेक्शन शामिल हैं। इसका उद्देश्य है कि जो जल नष्ट हो जाता है उसे पुनः उपयोग में लाया जाए और उसे पीने योग्य बनाया जाए।
क्या है जीरो लिक्विड डिस्चार्ज
जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) जल उपचार प्रक्रियाओं का एक परिकरण है, जिसका उद्देश्य अपशिष्ट जल को कम करना व स्वच्छ जल का उत्पादन करना है। इसका मतलब है ऐसा पानी जो पुनः उपयोग के लिए उपयुक्त है।
विशेषज्ञों की राय
सीपीसीबी के बोर्ड सदस्यों का मानना है कि इस पहल से उद्योगों पर जल उपयोग का दबाव कम होगा और पर्यावरण की दृष्टि से भी यह बहुत लाभकारी होगा। बोर्ड के सदस्य डॉ. अनिल गुप्ता का कहना है, “जीरो लिक्विड डिस्चार्ज आज समय की मांग बन गया है। अगर पानी की बर्बादी नहीं रोकी गई और अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग आरंभ नहीं किया गया तो भविष्य में अपूर्व जल संकट उत्पन्न होने की प्रबल संभावना है। इसलिए हम लोग सीपीसीबी के स्तर पर कुछ पहल शुरू कर रहे हैं। अब यह समय ही बताएगा कि किस हद तक इस पहल का सकारात्मक परिणाम आता है।”
और अधिक जानकारी
समय की मांग: वर्तमान समय में जल संरक्षण की दिशा में अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। बढ़ते जल संकट को देखते हुए, यह पहल जल प्रबंधन में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय अनुभव: सिंगापुर में इस तरह की तकनीकियों का उपयोग करके जल पुनःचक्रण में काफी सफलता मिली है। इस मॉडल को अपनाने से भारत में भी जल संकट से निपटने में मदद मिल सकती है।
वित्तीय लाभ: अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी फायदेमंद है। उद्योगों में पानी की लागत कम हो सकती है और लंबे समय में जल संरक्षण से होने वाले लाभ मिल सकते हैं।
सार्वजनिक जागरूकता: इस पहल के सफल कार्यान्वयन के लिए आम जनता और उद्योगों के बीच जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा ताकि जल पुनःचक्रण की तकनीकियों का व्यापक उपयोग हो सके।
नियामक पहलू: इस पहल को प्रभावी बनाने के लिए सख्त दिशानिर्देश और नियमावली का पालन सुनिश्चित करना होगा। सीपीसीबी और अन्य संबंधित संस्थाओं को जल पुनः उपयोग के मानकों का कड़ाई से पालन करना होगा।
तकनीकी चुनौतियाँ: जल पुनःचक्रण की प्रक्रिया में विभिन्न तकनीकी चुनौतियाँ आ सकती हैं। इसमें उच्च लागत, ऊर्जा की खपत, और तकनीकी जानकारियों की आवश्यकता शामिल है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए उचित योजना और निवेश की जरूरत होगी।
सरकारी समर्थन: सरकार को इस पहल को सफल बनाने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए। इससे उद्योगों को जल पुनःचक्रण तकनीकियों को अपनाने में मदद मिलेगी।
शोध और विकास: इस क्षेत्र में निरंतर शोध और विकास की आवश्यकता है। नई और उन्नत तकनीकियों का विकास और उनके कार्यान्वयन से जल पुनःचक्रण की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
इस प्रकार, सिंगापुर के मॉडल को अपनाकर अपशिष्ट जल को पीने योग्य बनाने की दिशा में यह कदम जल प्रबंधन में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इससे न केवल जल संकट से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रगति होगी।