लंदन, एजेंसी। गहरे और चमकीले रंग के प्लास्टिक साधारण और हल्के रंग के प्लास्टिक की तुलना में अधिक तेजी से हानिकारक सूक्ष्म कणों (माइक्रोप्लास्टिक) में बदल जाते हैं। यह दावा लीसेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है। शोध के परिणामों को देखते हुए, वैज्ञानिकों ने दैनिक उपयोग की वस्तुओं जैसे पेय की बोतलों, बाहरी फर्नीचर और खिलौनों में लाल, हरे, पीले, नीले जैसे गहरे रंग के प्लास्टिक के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। शोध में दिखाया गया है कि ये प्लास्टिक तेजी से हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक का रूप ले लेते हैं। अध्ययन के अनुसार, लगभग तीन वर्षों के बाद, रंगीन लाल, नीले और हरे प्लास्टिक के टुकड़े हो जाते हैं, जबकि सफेद, काले और चांदी रंग के प्लास्टिक पर कोई असर नहीं होता।
अलग-अलग रंग के प्लास्टिक को विश्वविद्यालय की छत पर रखा गया
ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया। इस शोध में ब्रिटेन और केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। डॉ. सारा ने खुदरा विक्रेताओं और निर्माताओं को रंगीन प्लास्टिक का उपयोग न करने की सलाह दी है, खासकर खाद्य पदार्थों के लिए। उन्होंने आगे कहा कि समुद्र तट की रेत में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों से इंद्रधनुष जैसी रंगीन आकृतियाँ बनना उनके लिए एक रहस्य था, जिसका कारण अब समझ में आ गया है।
यह परिवर्तन कैसे होता है?
शोध में पाया गया है कि जब रंगीन प्लास्टिक अधिक समय तक सूरज की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आते हैं, तो वे जल्द ही खतरनाक सूक्ष्म प्लास्टिक कणों में बदल जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्लास्टिक कण इतने छोटे होते हैं कि वे मानव शरीर के पाचन तंत्र या फेफड़ों के ऊतकों के माध्यम से रक्त में प्रवेश कर सकते हैं। ये हानिकारक प्लास्टिक पूरे मानव शरीर और कोशिकाओं में फैल सकते हैं।
इस प्रकार किया गया अध्ययन
यह शोध ‘एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने इंग्लैंड स्थित लीसेस्टर विश्वविद्यालय की छत पर विभिन्न रंगों के बोतल के ढक्कनों को लगभग तीन वर्षों तक धूप में रखा। वहीं, दक्षिण अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने एक दूरस्थ समुद्र तट पर पाए गए प्लास्टिक की वस्तुओं की जांच की। दोनों समुद्र तट और छत पर किए गए अध्ययनों में समान परिणाम सामने आए। रंग के अनुसार, इन रंगीन ढक्कनों के माइक्रोप्लास्टिक (प्लास्टिक के सूक्ष्म कण) में बदलने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण अंतर पाया गया।
शोध के सह-लेखक डॉ. सारा गैबॉट ने कहा, “लीसेस्टर विश्वविद्यालय की छत और दक्षिण अफ्रीका के तट पर अध्ययन के लिए एकत्र किए गए नमूनों से समान परिणाम प्राप्त हुए हैं। जबकि रंगीन प्लास्टिक के नमूने खतरनाक सूक्ष्म कणों में बदल गए, काले या सफेद रंग की प्लास्टिक वस्तुएं तीन साल पहले जैसी ही स्थिति में पाई गईं।