संकट में प्रवासी मछलियाँ: पाँच दशकों में घटी 81 फीसदी आबादी

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नई दिल्ली। मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में 1970 के बाद से 81 फीसदी की कमी आई है। इनमें सैल्मन, ट्राउट, ईल और स्टर्जन जैसी मछलियां शामिल हैं जो अपने जीवन के विभिन्न चरणों में लंबी यात्राएं करती हैं। साफ पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों पर जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स 2024 के मुताबिक, इनमें हर साल औसतन 3.3 फीसदी की दर से गिरावट आई है। इस रिपोर्ट में मछलियों की 284 प्रजातियों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन प्रजातियों के लिए मीठे पानी की धाराओं और नदियों का संरक्षण जरूरी है।

अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्रों में सबसे ज्यादा गिरावट

दक्षिण अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्रों में 50 वर्षों में इन प्रजातियों की आबादी में 91 फीसदी की गिरावट आई है। यह वह क्षेत्र है जहां दुनिया में मीठे पानी का सबसे बड़ा प्रवाह होता है, लेकिन समय के साथ बढ़ती इंसानी गतिविधियों के कारण जिस तरह नदियों में बांध बनाए जा रहे हैं, प्रदूषण और धाराओं को मोड़ने के लिए परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, उससे यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है। ऐसे में इन प्रजातियों के लिए खतरा बन रहे हैं।

पर गहरी हैं। प्रवास के दौरान इनमें से हजारों मछलियां हजारों किलोमीटर की यात्रा करती हैं। वे छोटी धाराओं में मछलियों की आबादी में जो गिरावट न केवल पानी की गुणवत्ता बल्कि यहां की खाद्य श्रृंखला के लिए भी खतरा बन रही है। उदाहरण के लिए यूरोप में नदियों की प्रवासी प्रवाह की राह में बाधा बनने से लाखों मछलियां प्रभावित हैं।

प्रवासी मछलियों की आबादी में गिरावट

1970 के बाद से मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रवासी मछलियों की आबादी में 81 फीसदी की कमी आई है। इस गिरावट के प्रमुख कारणों में बांधों का निर्माण, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और जल धाराओं के मार्ग में बदलाव शामिल हैं। बांध और जलधारा में बदलाव मछलियों की प्राकृतिक प्रवास यात्रा को बाधित करते हैं, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता और जीवन चक्र प्रभावित होता है।

सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र

दक्षिण अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्रों में 50 वर्षों में इन मछलियों की आबादी में 91 फीसदी की गिरावट आई है। यह आंकड़ा विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि यह क्षेत्र मीठे पानी का सबसे बड़ा प्रवाह क्षेत्र है। यहां की नदियों में बढ़ती इंसानी गतिविधियां, जैसे बांधों का निर्माण और प्रदूषण, ने मछलियों के पारिस्थितिक तंत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है।

पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

नदियों और धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में बदलाव से मछलियों के लिए आवश्यक पर्यावरणीय परिस्थितियाँ बदल जाती हैं। प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। नदियों में बढ़ता प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भी मछलियों की आबादी के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं।

संरक्षण के उपाय

प्राकृतिक प्रवाह की बहाली: नदियों और धाराओं में बांधों के निर्माण को नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि मछलियों की प्राकृतिक प्रवास यात्रा में बाधा न आए।

प्रदूषण नियंत्रण: नदियों में होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सख्त नियमों और उपायों की आवश्यकता है।

जलवायु परिवर्तन से निपटना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

विलुप्ति के कगार पर एक तिहाई प्रजातियां

मीठे पानी की करीब तिहाई मछलियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा प्रवासी मछलियों पर कहीं ज्यादा है। इनका प्रवास लंबी दूरी तक होता है। इन्हें नदियों का उन्मुक्त प्रवाह जरूरी है, लेकिन प्रवास के आ रही गिरावट इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। उदाहरण के लिए यूरोप में नदियों की उन्मुक्त बहाव की राह में बांध बनने से लाखों मछलियां प्रभावित हैं। नदियों में बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन भी इनके लिए खतरा बन रहा है। इन प्रजातियों की गिरावट के और खतों से जुड़े आंकड़ों के बारे में आकलन करने वाला नया इंडेक्स जारी होने वाला है। आने वाले दिनों में इनकी और गिरावट हो सकती है।

प्रवासी मछलियों की आबादी में आई यह भारी गिरावट एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। इसका प्रभाव केवल मछलियों पर ही नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर भी पड़ता है। यदि समय रहते उचित संरक्षण और प्रबंधन उपाय नहीं किए गए, तो कई मछली प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर पहुँच जाएंगी। यह आवश्यक है कि हम इस संकट को गंभीरता से लें और मछलियों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएँ।

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