समाज में सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। अक्सर, हल्की खबरें और सतही कंटेंट सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं, जिससे लोगों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे कंटेंट का लगातार सामना करने से गहन और महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। यह प्रवृत्ति बिन चाहे मानसिक भार को बढ़ाती है और ध्यान केंद्रित रखने की क्षमता को भी कम कर देती है। इसलिए, सोशल मीडिया का संतुलित और जिम्मेदार उपयोग करना आवश्यक है।
सतही विमर्श का प्रभाव वैचारिकता पर भी गहरा पड़ता है। सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर वही कंटेंट वायरल होता है जो बिकने योग्य होता है, चाहे वह कितना भी महत्वहीन क्यों न हो। इससे गंभीर और विचारशील विमर्श की जगह कम होती जा रही है, जिससे समाज में वैचारिकता और गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने की प्रवृत्ति कमजोर पड़ रही है। इस प्रकार का कंटेंट उपभोक्ताओं का ध्यान अधिक आकर्षित करता है, जिससे गहन और महत्वपूर्ण चर्चाएं पीछे छूट जाती हैं।अपने शरीर का अनैतिक प्रदर्शन, जुए की लत, बाजारवाद को बढावा, हिंसा का क्रूर प्रदर्शन, दंगे, स्कैम, ब्लैक मेल, अविश्वास सब की दीमक सभ्यता संस्कृति में लग चुकी है!
प्रकृति संकट में है पर्यावरण की बात नहीं मनुष्य प्रकृति पर गहरा संकट है!
साहित्य की समझ के स्थान पर इनका प्रभाव आसुरी शक्ति की तरह बढ़ता जा रहा है जबकि व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना और सोशल मीडिया पर सकारात्मक और सार्थक चर्चाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।इस प्रवृत्ति के कारण सही और महत्वपूर्ण मुद्दे अक्सर छिप जाते हैं। इससे उन विषयों पर ध्यान नहीं दिया जाता जो समाज के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। इसके परिणामस्वरूप, सही और विचारशील लोग निराश होकर मंच छोड़ने या पीछे हटने के लिए विवश हो सकते हैं। यह वैचारिक और सांस्कृतिक विकास को बाधित कर सकता है, क्योंकि सार्थक और गंभीर चर्चाओं के लिए जगह कम होती जा रही है। हमें सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर गुणवत्ता और गहनता को बढ़ावा देने वाले कंटेंट को प्रोत्साहित करना चाहिए, और उपयोगकर्ताओं को सतही सामग्री के बजाय महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
मनोरंजक और सतही खबरें जैसे सोनाक्षी की शादी, शिवानी को वोट, अरमान की दो पत्नियों को बिग बॉस में दिखाना, मांसाहारी-शाकाहारी बहस अक्सर मुख्यधारा में हावी रहती हैं। ये मुद्दे समाज के लिए महत्वपूर्ण विषयों को पीछे छोड़ देते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, राजनीति, और सामाजिक न्याय जैसे गंभीर मुद्दे अनदेखे रह जाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल समाज की वैचारिकता को प्रभावित करती है बल्कि लोगों को महत्वपूर्ण और सार्थक चर्चाओं से दूर भी ले जाती है।ये एकता कपूर के सीरिअल से भी भयावह है!
समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए, हमें ऐसी सतही और तुच्छ चर्चाओं के बजाय गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।वैचारिक ह्रास समाज के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है, और इसके प्रभाव लंबे समय तक महसूस किए जा सकते हैं। जब नागरिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान नहीं देते और सतही चर्चाओं में उलझे रहते हैं, तो नाश निश्चित ही है! यह नीति निर्माण, शिक्षा, और सामाजिक प्रगति को प्रभावित कर सकता है। इससे न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी बुरा असर पड़ता है। प्राकृतिक संकट भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वैचारिक ह्रास समाज की मूलभूत संरचना और उसके दीर्घकालिक भविष्य को प्रभावित करता है।
इस समस्या से निपटने के लिए, शिक्षा प्रणाली में सुधार, मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना, और गंभीर मुद्दों पर चर्चाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।अधिक संवेदनशील लोगों को अक्सर समाज में पागल या अजीब समझा जाता है। संवेदनशीलता को कमजोरी या नकारात्मक गुण के रूप में देखा जा सकता है, जबकि वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान गुण है। संवेदनशील लोग गहरी समझ, सहानुभूति, और सामाजिक न्याय की भावना रखते हैं। हालांकि, समाज में संवेदनशीलता की कमी और अपनी अपनी कहने वाले लोगों के कारण, ऐसे लोगों को अक्सर उपेक्षित कर छिपा दिया जाता है। जबकि मौजूदा हालात मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव रहे है, क्योंकि उन्हें सामाजिक समर्थन और समझ की आवश्यकता होती है!
डॉ मेनका त्रिपाठी
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