उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के चकोन गांव में पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन का अनूठा उदाहरण देखने को मिला है। यहां के जंगलों में आग का कारण बनने वाली चीड़ की सूखी पत्तियों (पिरूल) का अब सार्थक उपयोग हो रहा है। इस पहल के पीछे शिक्षक से उद्यमी बने महादेव गंगाड़ी का प्रयास है, जिन्होंने पिरूल को बायोमास ईंधन में बदलने का एक अभिनव तरीका खोजा है।
पिरूल से बिजली और बायोमास उत्पादों का उत्पादन
महादेव गंगाड़ी ने 6 जुलाई 2020 को चकोन गांव में एक 25 किलोवाट क्षमता का बिजली उत्पादन प्लांट स्थापित किया। यह प्लांट पिरूल को ऊर्जा में बदलता है। लगभग 38 किलो पिरूल से 25 किलोवाट बिजली बनाई जाती है। इसके अलावा, पिरूल से बायोमास ब्रिकेट और पेलेट जैसे उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं। इन उत्पादों को एनटीपीसी और अन्य बड़े उद्योगों को बेचा जा सकता है, जिससे स्थानीय ग्रामीणों को आय का अतिरिक्त स्रोत मिल रहा है।
महिलाओं को रोजगार, जंगलों को संरक्षण
गांव की महिलाएं जंगल से पिरूल इकट्ठा करती हैं, जिसके लिए उन्हें वन विभाग, मुख्यमंत्री योजना और प्लांट की ओर से प्रति किलो 4 रुपये मिलते हैं। इससे करीब 80 लोगों को रोजगार मिल रहा है, जिनमें 50 महिलाएं भी शामिल हैं। चकोन गांव की महिलाएं न केवल अपनी आजीविका कमा रही हैं, बल्कि जंगलों को आग से बचाने में भी योगदान दे रही हैं।
पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान
महादेव गंगाड़ी ने वन विभाग के साथ मिलकर ग्रामीणों को पिरूल के उपयोग और जंगलों को आग से बचाने के लिए जागरूक करना शुरू किया है। उनका मानना है कि अगर चीड़ के पिरूल का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो जंगलों को आग से बचाने और पर्यावरण को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण सफलता मिल सकती है।
गंगा घाटी के जंगलों के लिए संकल्प
महादेव गंगाड़ी, जिन्होंने शिक्षा विभाग में 41 वर्षों तक सेवा दी और 2017 में हेड मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए, ने गंगा घाटी के जंगलों को आग से बचाने का संकल्प लिया है। वे अपने निजी संसाधनों का उपयोग कर इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं।
चूरा और पिरूल के अन्य उपयोग
प्लांट में बनने वाली बिजली से न केवल ब्रिकेट और पेलेट बनाए जाते हैं, बल्कि इनका उपयोग खाना पकाने, बर्तन धोने के साबुन और पाउडर बनाने में भी हो रहा है। इस नवाचार से पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिल रहा है।
सरकार और समुदाय की भागीदारी
सरकार ने भी इस योजना में सहयोग दिया है। उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) प्लांट से उत्पादित बिजली को 7.53 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीद रहा है। महादेव का लक्ष्य है कि इस इकाई का विस्तार कर प्रति घंटे दो टन ब्रिकेट और पेलेट का उत्पादन किया जा सके।
महादेव गंगाड़ी की यह पहल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण का आदर्श उदाहरण है। इससे न केवल जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि ग्रामीण समुदाय की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। उनकी इस मुहिम से यह स्पष्ट होता है कि सही दृष्टिकोण और प्रयास से बड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
महादेव गंगाड़ी की यह अनूठी पहल न केवल उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचाने में सफल हो रही है, बल्कि ग्रामीणों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही है। पिरूल जैसी वन अपशिष्ट सामग्री को उपयोगी बायोमास ईंधन में बदलने का यह नवाचार पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का एक बेहतरीन मॉडल प्रस्तुत करता है।
इस योजना से न केवल स्थानीय महिलाओं और ग्रामीणों की आय बढ़ रही है, बल्कि चीड़ के जंगलों को संरक्षित करने और कार्बन उत्सर्जन कम करने में भी मदद मिल रही है। महादेव गंगाड़ी का यह प्रयास यह सिद्ध करता है कि सही सोच, सामुदायिक भागीदारी और सरकार के सहयोग से बड़े पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों का समाधान किया जा सकता है। यह पहल अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।