रामायण में प्रकृति और पर्यावरण

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रामायण, विशेष रूप से वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास रचित रामचरितमानस, भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो न केवल धार्मिक और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को भी उजागर करता है। रामायण में वृक्षों और वनस्पतियों का उल्लेख उनकी सुंदरता, उपयोगिता, और सांस्कृतिक महत्व के कारण बार-बार किया गया है।वृक्षों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:रामायण में विभिन्न वृक्षों का उल्लेख धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में किया गया है।

तुलसीदास की रामचरितमानस में यह वर्णन मिलता है कि कैसे भगवान राम ने वनवास के दौरान विभिन्न वृक्षों की छांव में विश्राम किया। वृक्षों को देवता के समान पूज्य माना गया है, और उनके संरक्षण की बात की गई है।

छं0 – फूले तरु बन चहू दिसि सोभा,

गावत कृपानिधान रघुराई।

लता वितान बिचित्र बिसाला,

जहँ तहँ बिचरहिं मृग हरषाई||

इस चौपाई में भगवान राम वन में विचरण कर रहे हैं और चारों दिशाओं में वृक्षों की शोभा का वर्णन कर रहे हैं। इसमें वृक्षों, लताओं और पशुओं का सौंदर्यपूर्ण वर्णन किया गया है, जो वन की शोभा को बढ़ा रहे हैं।वृक्षों का पर्यावरणीय महत्व:रामायण में वर्णित वनों का प्राकृतिक सौंदर्य आज भी हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करता है। वन न केवल विभिन्न जीव-जंतुओं के आवास होते हैं, बल्कि वे पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 वनों के माध्यम से जलवायु नियंत्रण, मिट्टी का संरक्षण और जल स्रोतों का संरक्षण होता है।वृक्षों का औषधीय और व्यावहारिक महत्व:रामायण में विभिन्न वृक्षों और पौधों का औषधीय महत्व भी उल्लेखित है।

संजीवनी बूटी का प्रसंग

इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जहां हनुमानजी ने लक्ष्मणजी की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने के लिए पूरा पर्वत ही उठा लिया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि वृक्षों और पौधों का जीवन रक्षक महत्व भी है।संस्कृति और लोक जीवन में वृक्षों का स्थान:रामायण में वृक्षों का वर्णन केवल प्राकृतिक सौंदर्य के संदर्भ में नहीं है, बल्कि वे उस समय के समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी थे। अयोध्या से लेकर पंचवटी और लंका तक, हर स्थान पर वृक्षों का विशेष महत्व था। रामायण में यह भी दिखाया गया है कि कैसे लोग वृक्षों के संरक्षण के प्रति सचेत थे और उनका आदर करते

अशोक वाटिका

अशोक वाटिका लंका में स्थित वह स्थान है जहाँ रावण ने सीता को बंदी बना कर रखा था। यह वाटिका प्राकृतिक सौंदर्य और विभिन्न वृक्षों से भरपूर थी। वाल्मीकि रामायण में अशोक वाटिका का वर्णन इस प्रकार है:

ततो वै मृदितैः पत्रैः पुष्पैश्च विविधान्स्तथा।

विभ्राजितमशोकं तं सीता स्नात्वा तदा शुभा॥

इस श्लोक में बताया गया है कि अशोक वाटिका में विभिन्न प्रकार के फूलों और पत्रों से सुशोभित अशोक वृक्ष थे। अशोक वृक्ष न केवल इस वाटिका का सौंदर्य बढ़ा रहे थे, बल्कि सीता को मानसिक शांति भी प्रदान कर रहे थे।सरयू नदी के तट पर वृक्षसरयू नदी अयोध्या के निकट बहने वाली पवित्र नदी है। रामायण में सरयू नदी के तट पर स्थित वृक्षों का वर्णन प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के संदर्भ में किया गया है। सरयू के तट पर अनेक प्रकार के वृक्ष थे, जो इस स्थान को और भी पवित्र और रमणीय बनाते थे।

सरयू तट हरे भरे वृक्ष,

पावन स्थल सुशोभित नीर।

जहाँ रघुकुल के राम ने,

किया तप और धर्म अधीर॥

इस वर्णन में सरयू के तट पर हरे-भरे वृक्षों का उल्लेख है, जो इस स्थान की पवित्रता और धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं। यह तट राम और उनके परिवार के लिए तप और धर्म के पालन का स्थल था।सीता की पर्णकुटीवनवास के दौरान सीता, राम और लक्ष्मण ने विभिन्न वन क्षेत्रों में निवास किया।

 पंचवटी में सीता की पर्णकुटी का वर्णन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यहाँ पर प्राकृतिक सौंदर्य, वृक्षों और वनस्पतियों का अद्भुत समन्वय था।सीता पर्णकुटी निर्मित,

लता-विटप सुशोभित पथ।

जहाँ राघव विराजत संग,

धरा ध्वनि मृदुलित तात॥

इस वर्णन में सीता की पर्णकुटी का उल्लेख है, जो लताओं और वृक्षों से सुशोभित थी। यह पर्णकुटी न केवल एक निवास स्थान थी, बल्कि प्रकृति के साथ समन्वय का प्रतीक भी थी।

रामायण हमें पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण, और प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग की प्रेरणा देता है। वृक्ष केवल पर्यावरण का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। रामायण में वर्णित वृक्षों और वनों की महिमा आज भी हमें याद दिलाती है कि हमें अपने पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

मेनका त्रिपाठी

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