ओम पर्वत की ओम आकृति बर्फ विहीन: एक पर्यावरणीय संकट का संकेत

saurabh pandey
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समुद्र तल से 6,191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ओम पर्वत की चोटी, जिसे उसके अनोखे “ओम” आकृति के लिए जाना जाता है, अब बर्फ से पूरी तरह विहीन हो चुकी है। यह पहली बार है जब इस पवित्र पर्वत की बर्फ पूरी तरह से पिघल गई है, जो कि एक गंभीर पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करती है।

बर्फ पिघलने के कारण

स्थानीय पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों का मानना है कि इस घटना के पीछे कई कारक हो सकते हैं। इनमें क्षेत्र में वाहनों की बढ़ती आवाजाही, भारी मशीनों का उपयोग, और सड़क निर्माण शामिल हैं। साथ ही, ग्लोबल वार्मिंग ने इस पिघलन को और भी तेज कर दिया है।

धारचूला के गुंजी गांव निवासी उर्मिला सनवाल ने 16 अगस्त को अपने परिवार के साथ ओम पर्वत के दर्शन किए। उन्होंने देखा कि ओम आकृति बर्फ से मुक्त हो चुकी है और इसका वीडियो और फोटो भी साझा किया। ओम पर्वत, जो भगवान शिव की भूमि के रूप में जाना जाता है, सदियों से गहरी आस्था का केंद्र रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली बार है जब ओम पर्वत की बर्फ पूरी तरह से गायब हो गई है।

ओम पर्वत और पर्यावरणीय संतुलन

ओम पर्वत का बर्फ विहीन होना पर्यावरण संतुलन के लिए एक चेतावनी है। इस क्षेत्र में बर्फ का अचानक गायब होना पर्यावरण के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में भारी मशीनों का उपयोग, सड़क निर्माण, और वनों की कटाई के कारण पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है।

पर्यावरणीय संवेदनशीलता और प्रशासन की भूमिका

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि इस क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाना और भारी मशीनों का उपयोग करना, जैसे कि गुंजी में सड़क डामरीकरण के लिए हॉटमिक्स प्लांट लगाना, ओम पर्वत के पास लोडर मशीन लगाना, और सड़क निर्माण कार्य करना, पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में वनों की कटाई और पर्यटकों की अत्यधिक आवाजाही ने इस क्षेत्र के पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।

हालांकि, प्रशासन ने अभी तक इस मामले की पुष्टि नहीं की है, लेकिन विशेषज्ञों की एक टीम को जांच के लिए भेजा जा सकता है। इस घटना ने पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है, ताकि ओम पर्वत जैसे पवित्र स्थानों की संवेदनशीलता को संरक्षित किया जा सके।

ओम पर्वत की बर्फ का गायब होना एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या का प्रतीक है। यह घटना ग्लोबल वार्मिंग, वाहनों की बढ़ती संख्या, और मानव गतिविधियों के पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को उजागर करती है। इसके संरक्षण और सुरक्षा के लिए प्रशासन और जनता को मिलकर प्रयास करना होगा, ताकि भविष्य में इस तरह के संकट से बचा जा सके।

Source- दैनिक जागरण

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