पराली जलाने पर सख्ती: अब होगी एफआईआर और जेल की सजा

saurabh pandey
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हर साल सर्दियों के मौसम में देश की राजधानी दिल्ली और आस-पास के राज्यों में बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण बनता है पराली जलाना। पराली जलाने से निकलने वाला धुआं वातावरण में घुलकर हवा को जहरीला बना देता है, जिससे लाखों लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालात इस कदर खराब हो जाते हैं कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने इस साल पराली जलाने पर सख्त कदम उठाने का फैसला किया है।

सीएक्यूएम का सख्त रुख

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जिला अधिकारियों को पराली जलाने की घटनाओं पर कड़ी नजर रखने और दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। अब पराली जलाने वालों पर एफआईआर दर्ज की जाएगी, साथ ही उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद आया है, जिसमें कोर्ट ने बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर चिंता जताई थी।

किसानों पर बढ़ी जिम्मेदारी

इस नए फैसले से किसानों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। अब उन्हें पराली जलाने के बजाय वैकल्पिक समाधान अपनाने की जरूरत है, ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो और वे कानूनी कार्रवाई से भी बच सकें। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को जागरूकता और तकनीकी सहायता की जरूरत है। पराली का निपटान करने के लिए कई आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से कई तकनीकें किसानों तक सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही हैं।

पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी

सर्दियों की शुरुआत होते ही हर साल पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। इस साल 15 सितंबर से 10 अक्टूबर तक के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 390, हरियाणा में 225, उत्तर प्रदेश में 133, राजस्थान में 21 और दिल्ली में 3 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह आंकड़ा प्रदूषण के खतरनाक स्तर की तरफ इशारा करता है।

प्रदूषण से बढ़ रही स्वास्थ्य समस्याएं

दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में हर साल प्रदूषण के कारण लाखों लोग सांस की बीमारियों, आंखों में जलन, खांसी और फेफड़ों की समस्याओं से जूझते हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण की वजह से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पराली जलाने पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और गंभीर हो सकती है।

दिल्ली सरकार की कृत्रिम बारिश की मांग

दिल्ली सरकार ने एक बार फिर केंद्र सरकार से कृत्रिम बारिश कराने की मांग की है, ताकि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित किया जा सके। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कृत्रिम बारिश के लिए आवश्यक तैयारियों को लेकर बैठक बुलाने की अपील की है। उनका मानना है कि कृत्रिम बारिश से वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को कम करने में मदद मिलेगी।

क्या है पराली जलाने का विकल्प?

किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सरकारें कई योजनाओं पर काम कर रही हैं। इनमें से एक है “स्मार्ट एग्रीकल्चर” की तकनीक, जो पराली को जलाने के बजाय उसे खाद या अन्य उपयोगी उत्पादों में बदलने की प्रक्रिया सिखाती है। इसके अलावा, कृषि उपकरणों के जरिए पराली को खेतों में ही मिलाकर मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

पराली जलाने पर सख्ती से रोक लगाने के लिए अब कानून का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन इसका समाधान सिर्फ सख्त कार्रवाई नहीं हो सकता। इसके लिए सरकार को किसानों को सही दिशा दिखाने और आधुनिक तकनीकों से परिचित कराने की आवश्यकता है। अगर पराली जलाने के सही विकल्प दिए जाएं, तो किसान न केवल प्रदूषण को कम करने में मदद करेंगे, बल्कि अपने खेतों की उर्वरता भी बढ़ा सकेंगे। समय की मांग है कि सभी राज्यों की सरकारें मिलकर इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान ढूंढें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण मिल सके।

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