कर्मफल

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बचपन में पिता जी के साथ मंदिर जाता था | मंदिर की एक दीवार पर यह वाक्य लिखा मिलता -” मनुष्य को उसके कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है | जो जैसा करता है , वैसा भोगता है | “

रामेश्वर प्रसाद का मन पढ़ने में नहीं लगता था | स्कूल से भागकर खेत में सिगरेट पीना उनका प्रमुख शौक़ था |  हाईस्कूल तक आते-आते गुंडों का एक गैंग बना लिया  | अब सिगरेट प्रेम  भाँग और शराब से होता हुआ गाँजे और  चरस तक पहुँच चुका था | उस इलाके में जितनी वारदातें होतीं उसमें रामेश्वर प्रसाद का नाम आदर से लिया जाता |  नकल दकल करके स्कूली परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं और कॉलेज पहुँचकर छात्र नेता बन गए | फिर चोरी , छिनैती , स्मगलिंग से लेकर हत्या , बलात्कार तक के केस में रामेश्वर प्रसाद का नाम उछला | सांप्रदायिक दंगों में भी रामेश्वर प्रसाद ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया |  छात्रसंघ चुनाव जीता | गुंडा नंबर वन तो थे ही | एक राजनीतिक दल ने सादर आमंत्रित किया | चुनाव आए तो उनकी योग्यताओं को देखते हुए टिकट भी मिल गया | राजनीति में रामेश्वर प्रसाद को महारथ हासिल थी | वे जानते थे कि कहाँ पर जाति के आधार पर  , कहाँ पर पैसे बाँटकर , कहाँ पर दारू और मुर्गा के आधार पर और कहाँ पर डरा धमका कर वोट हासिल करने हैं और कहाँ पर फर्जी वोट डलवाने हैं | कहाँ किसको भिड़ाना है , किसको फँसाना है और किसको लड़ाना है इसमें वे माहिर थे | गुंडा होने के साथ साथ वे रँगे सियार और घड़ियाली आॅंसू बहाने में भी स्नातकोत्तर उपाधि धारक थे  |  जिसमें इतनी योग्यता हो भला वह भी चुनाव हार सकता है ? रामेश्वर प्रसाद न सिर्फ चुनाव भारी मतों से जीते बल्कि सरकार की कैबिनेट में उनको स्थान मिला | आज रामेश्वर प्रसाद के छप्पर के स्थान पर हवेली खड़ी हो चुकी है | ए सी में रहते हैं | महंगी गाड़ियों में चलते है | जिले के डी एम और एस पी उनके बंगले पर टहल बजाते हैं | शहर से लेकर राजधानी तक तमाम मकान और फ्लैट के मालिक हैं | तमाम जमीनों पर रामेश्वर प्रसाद का अवैध कब्जा है | गाँव से लेकर राजधानी तक रामेश्वर प्रसाद के जलवे हैं | रामेश्वर प्रसाद जीवन का हर सुख और ऐश्वर्य भोग रहे हैं | बड़ी बड़ी हस्तियाँ रामेश्वर प्रसाद के दरबार में हाथ जोड़े खड़ी रहती हैं |     रामेश्वर प्रसाद की कक्षा में सुरेश प्रसाद भी पढ़ते थे | पढ़ने में बहुत तेज थे | सिगरेट , पान , बीड़ी सभी तरह के नशे से दूर थे | एक अच्छे विद्यार्थी में जितने भी गुण होने चाहिए वो सब सुरेश प्रसाद में थे | बहुत ही संस्कारित और गुरुजनों का आदर करने वाले थे | पिताजी एक गरीब किसान थे लेकिन बच्चे को उन्होंनें अच्छे संस्कार दिए  | उनके संस्कारों का ही परिणाम था कि सुरेश ने कभी भी खैनी , बीड़ी , सिगरेट , शराब आदि पदार्थों का सेवन नहीं किया | सुरेश पढ़ाकू थे और किसी भी प्रकार की गंदी हरकत , मार पीट , झगड़े ,सिनेमा , लड़कीबाजी  आदि से दूर रहते थे | मास्टरजी को उम्मीद थी कि सुरेश पढ़ लिखकर अच्छे पद पर जाएगा और गाँव का नाम रौशन करेगा | पिताजी की गरीबी सुरेश प्रसाद की पढ़ाई के आड़े आई | उनकी हैसियत सुरेश प्रसाद को आगे पढ़ा सकने की नहीं थी | सुरेश प्रसाद की आगे की पढ़ाई नहीं हो सकी | इंटर के बाद से ही काम ढूँढ़ने लगे | किसी साथी की सहायता से दिल्ली गए लेकिन वहाँ भी जम नहीं पाए | वहाँ का वातावरण उनके संस्कारों के अनुकूल नहीं था | लौटकर गाँव आ गए | अब गाँव में ही कुछ मेहनत मजदूरी करके , कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह दो जून की रोटी जुटा पाते हैं | 
    इन दोनों को देखकर मुझे वह मंदिर की दीवार याद आ जाती है |  दीवार पर सत्य ही लिखा था -' मनुष्य को अपने कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है | जो जैसा करता है , वैसा भोगता है | " 

अविनाश चंद्र 
प्रवक्ता ( हिंदी )
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