मै गंगा और सरयू के संगम पर झोपड़ी लगा के रहता था | एक दिन बगल के गाँव के एक सज्जन मेरे पास आये | वे किसी मित्र के साथ पहले भी मेरे पास आ चुके थे और जैसा कि उन्होंने बताया , वे मेरी बातों से प्रभावित थे | उनके पास एक समस्या थी जिसे वे गंभीर मानते थे और उस पर मेरी राय जानना चाहते थे |
उनकी समस्या के केंद्र में उनका पुत्र था |
उनका पुत्र मेधावी था | पढ़ने में बहुत तेज था | अभी बारहवी में पढ़ता था | उसका स्वप्न था आटोमोबाइल इंजीनियरिग में जाना | उसके पास आत्मविश्वास था कि वह प्रतियोगिता की परीक्षा पास कर जाएगा | संकट उसके पिता का था | वे उसकी पढ़ाई का खर्च उठा पाने में असमर्थ थे | घर में बंटवारे के बाद मात्र उनके पास ढाई बीघा जमीं थी | दीयर का इलाका था | खेत बाढ़ में डूब जाता था | परवल के सब्जी की खेती करते थे | गंगा अगर मिटटी दाल देती तो फसल भरपूर होती थी | एक ऑटो था जिस पर वे लोगो के घर गैस पहुंचाते थे | उनकी दो बेटियां थी जो सयानी हो रही थी और उन पर उनकी शादी का दबाव बनाने लगा था | उन्होंने मुझसे बताया कि बेटे को पढ़ाने के लिए वे खेत नहीं बेच सकते | जब उन्होंने मुझसे कहा , समझ में नहीं आता क्या करू तो उनकी आँखे भर आई थी |
मैंने उनकी करुणा को समझा और कहा
दो दिन के लिए बेटे को मेरे पास भेज दीजिए |
उन्होंने उसे मेरे पास भेज दिया |
लड़का बहुत प्यारा था | बहुत अच्छे संस्कार थे | वह सुवह मेरे साथ जागता | | खाना बनाता | बर्तन धोता | दोपहर बाद जो बच्चे मेरे पास पढ़ने आते उन्हें पढाता| शाम को आरती के पहले गोबर से लिपाई करता | आरती के बाद आये हुए लोगो को चाय बनाकर पिलाता और खुश रहता | तीसरे दिन उसके पिता आ गए | अब तक मै उसे अच्छी तरह समझ चुका था |
मैंने बताया , वैदिक काल में शिक्षा गुरु कुल में मिलती थी | ज्ञान मिलता था, सर्टिफिकेट नहीं मिलाता था | आज महाविद्यालय में सर्टिफिकेट मिलता है और ज्ञान भी मिलता है | लेकिन ज्ञान से ज्यादा जोर सर्टिफिकेट पर होता है | मेरे कहने का तात्पर्य है की दो तरह की शिक्षा पद्धति है | एक ज्ञान गुरु से मिलता है जिसमे उनका अनुभव भी शामिल होता है. जिसमे बस तुम शामिल होते हो | आज के विश्व विद्यालय की शिक्षा पद्धति में कम्पिटीसन की तैयारी ,परीक्षा ,पढ़ाई और नौकरी की तलाश तक कितना समय लगेगा ,कितना श्रम लगेगा और कितना पैसा लगेगा | इसके बाद मैंने उसे मैकाले की शिक्षा पद्धति के बारे में बताया |
आखिर में मैंने पूछा – क्या तुम गुरु से आटोमोबाइल इंजीनियरिंग की शिक्षा लेने के लिए तैयार हो |
उसने कहा – हाँ
गुरु भाव से जहाँ मै भेज रहा हूँ जाना | सेवा भाव रखना | अनुभव का ज्ञान किताबी ज्ञान से बड़ा होता है| अनुभव के साथ तुम किताबो के संपर्क में रहना | वे सारी किताबे तुम पढ़ सकते हो और मेरा ख्याल है तुम्हे ज्यादा अच्छी तरह समझ में आएगी | एक साल तक उससे बदले में पैसा मत लेना |
वह जो खाए खाना |
जैसे रखे रहना |इसके बात उसके पिता से सलाह करके एक मोटर सायकिल मेकेनिक जो मेरा मित्र था ,के पास भेज दिया | उसने गुरु की तरह उस मेकेनिक की सेवा की | वहा उसने मात्र छः माह में वह योग्यता हासिल कर ली जो कई सालो तक पढ़ाई करने के बाद लोग हासिल नहीं कर पाते | उसे ज्ञान के साथ गुरु के सम्बन्ध मिले , ग्राहक मिले | उसके गुरु ने दो साल बाद उसके लिए अलग गैरेज खुलवा दिया | उसका अकेला गैरेज है जहा इन्जिमियारिग की किताबे भी है |उसके सहयोग से उसके दोनों बहनों की शादी हुई | उसका पूरा परिवार भी खुश है और वह आत्मनिर्भर है | यह आत्मनिर्भरता का मन्त्र है जो मुझे उस युवक के बहाने समझ में आया |
शिक्षा मंहगी हो गई है | शिक्षालय बाजार बन गए है |प्रकृति के दोहन की तकनीक ही आज की शिक्षा का मूल है। अभिभावक फ़ीस चुकाने के लिए परेशान है | ऐसे समय में आत्मनिर्भरता के लिए क्या यह सही नहीं है कि अंग्रेजी काल के मैकाले जनित विश्विद्यालय और विद्यालय को हटा कर ,प्रमाण पत्रों को हटा कर वैदिक काल के अनुभव जन्य ज्ञान को शामिल किया जाय | किताबो को शामिल किया जाय | इस तरह मैकाले भागेगा और आत्मनिर्भरता जागेगी |
निलय उपध्याय