इनवैसिव स्पेसीज के वजह से जैवविविधता पर पड़ रहा है बुरा असर ।

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भारत में Invasive Alien Species  (IAS) जैव विविधता और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के लिए गंभीर खतरा हैं। ये प्रजातियां कृषि, जलीय कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, जिससे कई SDGs की प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

 जैव विविधता की हानि और खाद्य सुरक्षा

फॉल आर्मीवॉर्म (Fall armyworm)  और Tropical Race  fungus 4 (TR4) जैसे  Invasive Alien Species  कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते हैं (SDG 1: कोई गरीबी नहीं)। ये प्रजातियां फसलों को नष्ट कर किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती हैं (SDG 2: भूख समाप्त करना)। उदाहरण के लिए, papaya mealybug नामक  एक कीट के रूप में पहचाना गया है जो खाद्य उत्पादन को कम करता है।

 स्वास्थ्य और जल संसाधन

Invasive Alien Species  बीमारियों के प्रसार में भी योगदान करते हैं (SDG 3: अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण)। टाइगर मच्छर, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के वाहक है। इसके अलावा, Water-hyacinth और coontails  जैसी प्रजातियां जल निकायों की पारदर्शिता को कम करती हैं और स्वच्छ जल की उपलब्धता को प्रभावित करती हैं (SDG 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता)।

 आर्थिक प्रभाव

आर्थिक विकास के संदर्भ में (SDG 8: अच्छा काम और आर्थिक वृद्धि), Invasive Alien Species  मछली की उपलब्धता को कम करते हैं और पर्यटन को प्रभावित करते हैं, जिससे जलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचता है। जहाजों पर बायोफाउलिंग जीव समुद्री उद्योगों को प्रभावित करते हैं, जिससे आर्थिक विकास को चुनौती मिलती है (SDG 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा)।

जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन

Invasive Alien Species  आर्द्रभूमि की प्रभावशीलता को कमजोर करते हैं, जिससे जलवायु लचीलापन कम होता है (SDG 13: जलवायु कार्रवाई)। वे पारिस्थितिक संतुलन को बदलते हैं, जिससे स्थानीय प्रजातियों की जलवायु परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन क्षमता कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा आदिवासी समुदायों की चराई भूमि को प्रभावित करता है, जिससे असमानता बढ़ती है (SDG 10: असमानता कम करना)।

समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र

समुद्री पर्यावरण में, शेर मछली और अफ्रीकी कैटफ़िश जैसी आक्रामक मछली प्रजातियां स्थानीय जैव विविधता को बाधित करती हैं, जिससे देशी मछलियों की उपलब्धता प्रभावित होती है (SDG 14: जल के नीचे जीवन)। भूमि पर, अफ्रीकी घोंघा और द्वीपों पर फॉल आर्मीवॉर्म मेंढक देशी जीवों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं (SDG 15: भूमि पर जीवन)

भारत में Invasive Alien Species  (IAS) के खतरों की पहचान के बावजूद, इनके लिए पर्याप्त समझ और ठोस उपायों की कमी है। सीमित अनुसंधान और डेटा संग्रह प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं। 2020 तक, IAS के प्रभावों पर केवल 150 अध्ययन उपलब्ध थे, जो इस क्षेत्र में अनुसंधान की कमी को दर्शाते हैं।

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) के जैव विविधता नीति और विधि केंद्र (CEBPOL) ने IAS पर शोध और नीति विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, IAS के प्रबंधन की निगरानी के लिए एक समर्पित एजेंसी की तत्काल आवश्यकता है। सरकारी निकायों, शोधकर्ताओं और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग को मजबूत करना आवश्यक है।

आक्रामक प्रजातियों के प्रभावों को संबोधित करना भारत की जैव विविधता की रक्षा और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण है। नीति सुधार, अनुसंधान और सामुदायिक भागीदारी को मिलाकर एक समन्वित प्रयास IAS के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है, जिससे सतत विकास और पारिस्थितिकी तंत्र की फ्लेक्सीबीलिटी  सुनिश्चित होगी।

Source – Science Reporter

Manali Upadhyay

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