कॉप29 सम्मेलन के अंतिम समझौते पर भारत ने अपनी असहमति जाहिर करते हुए इसे जलवायु संकट का प्रभावी समाधान न मानने की बात कही है। भारत की ओर से आर्थिक मामलों की सलाहकार चांदनी रैना ने बयान देते हुए कहा, “यह दस्तावेज़ एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं है। यह हमारी सामूहिक चुनौती का सामना करने में असमर्थ है।” भारत ने समझौते में सुझाए गए प्रावधानों पर आपत्ति जताई, विशेषकर जलवायु वित्त पोषण के लक्ष्यों पर।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने भी इस पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “विकसित देशों से 2035 तक 300 अरब डॉलर जुटाना अस्पष्ट और अनिश्चित है।” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि तनावपूर्ण वैश्विक माहौल में यह कदम एक “सर्वश्रेष्ठ उपाय” है।
जलवायु वित्त पोषण और भारत की आपत्ति
भारत ने स्पष्ट किया है कि फाइनल एग्रीमेंट में वित्त पोषण की कमी चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता जरूरी है।
टेरी के अर्थ साइंस और क्लाइमेट चेंज विशेषज्ञ दीपक दासगुप्ता ने कहा, “300 अरब डॉलर का लक्ष्य स्वागतयोग्य है, लेकिन इसे अनुदान या रियायती वित्त के रूप में होना चाहिए, न कि ऋण के रूप में।”
जी20 और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में सुधार की जरूरत
जी20 देशों ने जलवायु वित्त पोषण के लिए टैक्स सुधार और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को प्रभावी बनाने पर जोर दिया है। मल्टी डेवलपमेंट बैंक का अनुमान है कि वे निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए 2030 तक हर साल 120 अरब डॉलर जुटा सकते हैं, जिसमें 42 अरब डॉलर जलवायु अनुकूलन के लिए निर्धारित होंगे।
स्वच्छ ऊर्जा पर बढ़ता निवेश
दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा पर निवेश तेजी से बढ़ रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के मुताबिक, सौर ऊर्जा और अन्य स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों पर निवेश, जीवाश्म ईंधन के मुकाबले दोगुना तेज़ी से बढ़ रहा है। उम्मीद है कि 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा की मांग अपने चरम पर होगी।
कॉप29 में लॉबिंग का प्रभाव और भविष्य की चुनौतियां
जीवाश्म ईंधन समर्थक लॉबिस्ट ने कॉप29 के दौरान समझौतों में अड़चनें डालने की कोशिश की। हालांकि, वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में ऐसी बाधाओं को दूर करना जरूरी होगा।
ब्राजील में कॉप30 से उम्मीदें
ब्राजील में अगले साल आयोजित होने वाले कॉप30 में एक सकारात्मक हल की उम्मीद जताई जा रही है। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने इसे “परिवर्तनकारी कॉप” करार दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्सर्जन अब भी गलत दिशा में जा रहे हैं। बीते 20 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं ने करीब 5 लाख लोगों की जान ली है, और हर साल $227 बिलियन का नुकसान हो रहा है।
भविष्य की चर्चाएं अब बान और बेलम में होंगी, जहां सरकारों की महत्वाकांक्षा और नीतियों की असली परीक्षा होगी। यूके ने 2035 तक 1990 के स्तर से 81% उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य रखा है। अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी इसी राह पर चलने की जरूरत है।
कॉप29 ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में एक नई बहस छेड़ी है। हालांकि, फंडिंग और क्रियान्वयन के मोर्चे पर कई सवाल बाकी हैं। सभी की निगाहें अब कॉप30 पर टिकी हैं, जो दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो सकता है।