अफ्रीका में सूखे का कहर: मानवीय संकट और पर्यावरणीय चुनौती

saurabh pandey
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अफ्रीकी महाद्वीप के कई देश इस समय भीषण सूखे की मार झेल रहे हैं। नामीबिया और जिम्बाब्वे जैसे देशों में हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि लोगों को जीवित रहने के लिए वन्यजीवों का शिकार कर भोजन जुटाना पड़ रहा है। नामीबिया ने हाल ही में अपने निवासियों को मांस उपलब्ध कराने के लिए 83 हाथियों को मारने का फैसला किया है, वहीं जिम्बाब्वे ने भी 200 हाथियों को मारने का आदेश जारी किया है। इन कठोर फैसलों के पीछे बढ़ते तापमान और पानी की किल्लत ने मनुष्यों और जानवरों के बीच संसाधनों की भारी कमी पैदा कर दी है।

अफ्रीका में सूखे की भयावहता

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के अनुसार, वर्तमान में अफ्रीका के छह देश – बोत्सवाना, लेसोथो, नामीबिया, मलावी, जाम्बिया और जिम्बाब्वे – भीषण सूखे का सामना कर रहे हैं। इन देशों में लाखों लोग भोजन, पानी और आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सूखे की गंभीरता को देखते हुए नामीबिया ने 22 मई को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की। इस आपदा ने फसलों को बर्बाद कर दिया, मवेशियों की मौत हो रही है, और भोजन के संकट ने गरीब तबकों को बुरी तरह प्रभावित किया है।

नामीबिया के लगभग 84% खाद्य संसाधन समाप्त हो चुके हैं। परिणामस्वरूप, लोग जंगली जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरने पर मजबूर हो गए हैं। नामीबिया के कानून के अनुसार, आपातकालीन स्थितियों में नागरिक प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। इस वजह से वन्यजीवों का शिकार यहां कानूनी रूप से किया जा सकता है, लेकिन इसका देश के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक नुकसान होना तय है।

जिम्बाब्वे और अन्य देशों में सूखे की स्थिति

जिम्बाब्वे में स्थिति और भी खराब है। अल नीनो की वजह से पड़े सूखे ने देश की आधी से अधिक फसलों को नष्ट कर दिया है। परिणामस्वरूप, सरकार ने 200 हाथियों को मारकर मांस उपलब्ध कराने का फैसला किया है। यहां के लोगों को भीषण खाद्य संकट का सामना करना पड़ रहा है। यह निर्णय तत्काल भोजन की समस्या को हल कर सकता है, लेकिन देश की जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण पर इसका भारी असर पड़ सकता है।

बोत्सवाना, लेसोथो, मलावी, जाम्बिया, और जिम्बाब्वे भी ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहे हैं। बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन ने इन देशों में कृषि और पानी की उपलब्धता को बुरी तरह प्रभावित किया है। फसलें खराब हो चुकी हैं, और ग्रामीण इलाकों में पानी की भारी किल्लत हो गई है। पशुधन के मरने की घटनाएं आम हो गई हैं, जिससे लाखों किसानों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है।

सूखे से निपटने के उपाय

संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन इन देशों को सूखे से निपटने में मदद करने के लिए मानवीय सहायता प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, मौजूदा संकट को देखते हुए तात्कालिक राहत से ज्यादा दीर्घकालिक समाधान की जरूरत है। स्थानीय स्तर पर पानी के संरक्षण और प्रबंधन के लिए टिकाऊ समाधानों को अपनाना बेहद जरूरी हो गया है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कदम उठाने की भी आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय को न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए, बल्कि इन देशों में टिकाऊ कृषि और जल प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए। पेड़ों का संरक्षण, जल संचयन, और सूखा-रोधी फसलें उगाने जैसी योजनाएं इन देशों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। इसके अलावा, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए विशेष नीति बनानी चाहिए ताकि मानवीय और प्राकृतिक दोनों जरूरतों का ध्यान रखा जा सके।

अफ्रीका में सूखा और उससे उत्पन्न संकट एक गंभीर चुनौती है, जो केवल स्थानीय नहीं बल्कि वैश्विक ध्यान की मांग करता है। पर्यावरणीय समस्याओं और मानव जीवन के लिए संघर्ष के बीच संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है। वन्यजीवों का शिकार और संसाधनों का अंधाधुंध दोहन संकट को और बढ़ा सकता है। ऐसे में, स्थानीय सरकारों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और पर्यावरण विशेषज्ञों को मिलकर एक ऐसा समाधान निकालना होगा, जो न केवल लोगों की जरूरतें पूरी करे, बल्कि प्रकृति और जैव विविधता को भी संरक्षित रखे।

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