एनजीटी का बड़ा फैसला: देवरिया में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा की पर्यावरण मंजूरी रद्द

saurabh pandey
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में एक सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा (सीबीडब्ल्यूटीएफ) के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया है। यह मंजूरी उत्तर प्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा दी गई थी। इसके साथ ही, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा दी गई स्थापना की सहमति को भी रद्द कर दिया गया है।

यह मंजूरी पहाड़पुर गांव में जेकेएन पूर्वांचल सीबीडब्ल्यूटीएफ वर्क्स के लिए दी गई थी। एनजीटी ने यूपीपीसीबी को मौजूदा उपचार सुविधाओं के अंतर्गत जैव-चिकित्सा अपशिष्ट की सूची बनाने और समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, बोर्ड को 75 किमी के दायरे में अपशिष्ट की मात्रा और सुविधाओं की क्षमता का मूल्यांकन करने को कहा गया है। यूपीपीसीबी को तीन महीने में सीबीडब्ल्यूटीएफ दिशानिर्देश 2016 के अनुसार नई उपचार सुविधाओं की कार्य योजना भी तैयार करनी होगी।

मारकंडा नदी को दूषित कर रहे दवा उद्योग: एनजीटी ने गंभीरता से लिया मामला

एनजीटी ने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में मारकंडा नदी और काला अंब क्षेत्र में जल और वायु प्रदूषण के मामलों को गंभीरता से लिया है। अदालत ने दवा उद्योगों पर आरोप लगाया है कि वे हानिकारक केमिकल, भारी धातुएं और दवा अवशेष नदी में छोड़ रहे हैं, जिससे जल गुणवत्ता खराब हो रही है और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। इन मामलों की सुनवाई 8 नवंबर, 2024 को एक साथ की जाएगी।

गंगा घाट पर जमा प्लास्टिक कचरा: एनजीटी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से मांगा जवाब

एनजीटी ने पश्चिम बंगाल के गंगा घाटों पर प्लास्टिक कचरे को लेकर मुख्य सचिव से जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है। आवेदक सुप्रोवा प्रसाद ने घाटों पर प्लास्टिक कचरे को लेकर चिंता जताते हुए 100 मीटर के क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त घोषित करने और घाटों पर प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। एनजीटी ने मुख्य सचिव से इस पहलू पर गौर करने के निर्देश दिए हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के हालिया निर्णयों ने प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है। देवरिया में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा की पर्यावरण मंजूरी को रद्द करने का निर्णय इस दिशा में एक सख्त कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि पर्यावरणीय मानदंडों का पालन किया जाए और अपशिष्ट प्रबंधन में पारदर्शिता बनाए रखी जाए।

हिमाचल प्रदेश में दवा उद्योगों द्वारा मारकंडा नदी और काला अंब क्षेत्र में प्रदूषण के मामलों की सुनवाई से स्पष्ट है कि उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी के प्रति एनजीटी की संवेदनशीलता और गंभीरता बढ़ रही है।

पश्चिम बंगाल में गंगा घाटों पर प्लास्टिक कचरे की समस्या के समाधान के लिए एनजीटी का निर्देश, न केवल गंगा की पारिस्थितिकी को बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह अन्य क्षेत्रों में भी प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करेगा।

इन फैसलों के माध्यम से एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण, और समग्र पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान किए हैं। यह दृष्टिकोण उन प्रयासों को मजबूत करता है जो पर्यावरणीय स्थिरता और जनस्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे हैं।

Source and data – down to earth

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