नई दिल्ली। हाल ही में जारी ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ की रिपोर्ट ने चिंता जताई है कि भारत में पिछले दशक में 23.3 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र का नुकसान हुआ है। यह कमी पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रही है और जलवायु परिवर्तन की समस्या को और गहरा रही है। वन क्षेत्र के घटने से जैव विविधता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
वन क्षेत्र में गिरावट
रिपोर्ट के अनुसार, असम और मेघालय जैसे राज्यों में वन क्षेत्र में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है। इन क्षेत्रों में वन विनाश की दर 160 प्रतिशत से अधिक है। वन क्षेत्रों का क्षय न केवल पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित कर रहा है बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवनयापन पर भी असर डाल रहा है।
तापमान में बढ़ोतरी
वन क्षेत्र के घटने से भारत में औसत तापमान में भी वृद्धि हो रही है। 2011 से 2021 के बीच, देश का औसत तापमान 0.64 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। बढ़ते तापमान के कारण सूखा, गर्मी की लहरें और अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी बढ़ रही हैं। यह स्थिति न केवल मानव जीवन के लिए खतरनाक है बल्कि आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर रही है।
प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा
वन क्षेत्र के घटने से बाढ़, सूखा और भू-स्खलन जैसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इन आपदाओं से न केवल मानव जीवन और संपत्ति को नुकसान हो रहा है बल्कि यह स्थिति आर्थिक विकास के लिए भी खतरा बन रही है।
वन संरक्षण के लिए उपाय
वन क्षेत्र को बचाने और पुनःस्थापित करने के लिए सरकार और जनता को मिलकर प्रयास करने होंगे। वन संरक्षण के लिए सख्त कानूनों का पालन, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण, पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता जैसे उपाय आवश्यक हैं। सरकार को पर्यावरणीय नीतियों में सुधार कर उन्हें और प्रभावी बनाना होगा।
शहरों में हरित क्षेत्र का विस्तार आवश्यक
नागपुर नगर निगम के अतिरिक्त निदेशक भूपन कुमार मेघु का कहना है कि शहरों में भी हरित क्षेत्र का विस्तार अत्यंत आवश्यक है। शहरों में बढ़ते प्रदूषण और तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए हरित क्षेत्रों का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। शहरी वृक्षारोपण, पार्क और ग्रीन बेल्ट का निर्माण, रooftop गार्डनिंग को बढ़ावा देना और सरकार व निजी क्षेत्र का सहयोग इस दिशा में अहम कदम हो सकते हैं।
भारत में वन क्षेत्र का क्षय और तापमान में बढ़ोतरी एक गंभीर समस्या है। वन संरक्षण और हरित क्षेत्र के विस्तार के लिए संयुक्त प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं। इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बहाल होगा बल्कि मानव स्वास्थ्य और देश का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।