गणेश चतुर्थी के अवसर पर भक्तों में भगवान गणेश की इको-फ्रेंडली मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ रही है। बाजारों में इस साल विशेष रूप से ऐसी मूर्तियां बनाई जा रही हैं, जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों और विसर्जन के बाद जल्दी से पानी में घुल जाएं।
दिल्ली के विभिन्न बाजारों में जैसे कि नंगली डेयरी, सरोजिनी नगर, सागरपुर और आरके पुरम में कलाकार इन मूर्तियों को बनाने में जुटे हैं। ये मूर्तियां विशेष रूप से प्राकृतिक सामग्री जैसे कि गंगा की मिट्टी, मध्य प्रदेश की लकड़ी, और पुआल से बनाई जा रही हैं।
इको-फ्रेंडली मूर्तियों का महत्व
इको-फ्रेंडली मूर्तियों का महत्व आज के समय में और भी बढ़ गया है। पारंपरिक मूर्तियों के निर्माण में प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल पेंट्स का उपयोग किया जाता है, जो जल में विसर्जन के बाद प्रदूषण फैलाते हैं। ये सामग्रियां पानी में जल्दी नहीं घुलतीं और इससे जलीय जीवों को नुकसान पहुंचता है। इसके विपरीत, इको-फ्रेंडली मूर्तियां पूरी तरह से प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों से बनाई जाती हैं, जो विसर्जन के बाद आसानी से पानी में घुल जाती हैं, जिससे नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों में प्रदूषण नहीं होता।
इको-फ्रेंडली मूर्तियों का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ये हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को पर्यावरण के साथ संतुलित करती हैं। भगवान गणेश की मूर्ति, जो विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति के रूप में पूजी जाती है, उनके विसर्जन से प्रकृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। इको-फ्रेंडली मूर्तियां इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं, जो हमें अपनी आस्था को बनाए रखने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भी एहसास कराती हैं।
बाजार में बढ़ती मांग
इस साल, गणपति की इको-फ्रेंडली मूर्तियों की मांग में 50% की वृद्धि देखी गई है। एक फीट की मूर्ति की कीमत 500 रुपये, जबकि 7 फीट की मूर्ति की कीमत 12 हजार रुपये तक है। बाजारों में गणपति की पूजा-अर्चना के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है, जो इको-फ्रेंडली मूर्तियों, पंडाल, और पूजा सामग्री की खरीदारी कर रही है।
गणेश चतुर्थी की तैयारी के साथ ही दिल्ली समेत देश के विभिन्न राज्यों में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए गणपति की इको-फ्रेंडली मूर्तियों का क्रेज बढ़ता जा रहा है। इन मूर्तियों का उपयोग न केवल हमारी आस्था को प्रदर्शित करता है, बल्कि एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का भी प्रतीक है।
इको-फ्रेंडली गणपति मूर्तियों की बढ़ती मांग इस बात का प्रमाण है कि लोग अब पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं। ये मूर्तियां न केवल हमारी आस्था और धार्मिक परंपराओं को सम्मान देती हैं, बल्कि प्रकृति के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जैसे-जैसे पर्यावरणीय चुनौतियां बढ़ रही हैं, इको-फ्रेंडली मूर्तियों का महत्व और भी बढ़ता जा रहा है। यह न केवल एक जिम्मेदार कदम है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सकारात्मक संदेश भी है कि आस्था और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।