जलवायु परिवर्तन और बच्चों का स्वास्थ्य: एक बड़ी चुनौती

saurabh pandey
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आज जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है। इसमें सबसे अधिक असर बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन हमारे भोजन के पोषक तत्वों को प्रभावित कर रहा है। यह कमी बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।

भोजन में पोषक तत्वों की कमी: एक चिंताजनक संकेत

चावल, गेहूं, दालें और सब्जियों जैसे दैनिक भोजन में आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे आयरन, जिंक, कैल्शियम और विटामिन की मात्रा में गिरावट देखी गई है। इसका मतलब यह है कि भले ही आप भरपेट भोजन कर रहे हों, लेकिन जरूरी पोषक तत्व आपके शरीर तक नहीं पहुंच रहे।

  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 के अनुसार, 116 देशों में भारत 101वें स्थान पर है, जो यह दिखाता है कि हमारे देश में भोजन की गुणवत्ता और पोषण की स्थिति दोनों ही खराब हैं।
  • भोजन की कमी और पोषक तत्वों का घटता स्तर एक बड़ी आबादी को कुपोषण के खतरे में डाल रहा है।

बच्चों और महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन का गहरा असर

बच्चे, गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं पोषण की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।

  • बच्चों में पोषक तत्वों की कमी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है और वे बार-बार बीमार पड़ते हैं।
  • महिलाओं में आयरन और कैल्शियम की कमी से एनीमिया और हड्डियों से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं।

जलवायु परिवर्तन कैसे करता है भोजन को प्रभावित?

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का बढ़ना है।

  • बढ़ी हुई CO2 पौधों की जैव-उपलब्धता को बदल देती है, जिससे भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा घट जाती है।
  • अधिक तापमान और सूखे की घटनाएं फसलों की गुणवत्ता और पैदावार दोनों को प्रभावित करती हैं। टेरी (TERI) के शोध से यह साफ हुआ है कि जलवायु परिवर्तन न केवल कृषि उत्पादन पर असर डाल रहा है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य को भी सीधे प्रभावित कर रहा है।

कृषि भेद्यता और बाल स्वास्थ्य सूचकांक

टेरी के अध्ययन ने 572 जिलों का विश्लेषण कर निम्न निष्कर्ष निकाले:

  • 230 जिले कृषि भेद्यता के लिहाज से अधिक संवेदनशील हैं।
  • 162 जिले बच्चों के स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण माने गए।
  • इन दोनों सूचकांकों के आधार पर 135 जिलों को विशेष रूप से संवेदनशील चिन्हित किया गया।

प्रमुख राज्य जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं:

  • मध्य प्रदेश: 9 जिले
  • राजस्थान और उत्तर प्रदेश: 6-6 जिले
  • गुजरात: 5 जिले
  • बिहार: 3 जिले

समाधान के संभावित रास्ते

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है:

मोटे अनाजों का प्रोत्साहन

  • ज्वार, बाजरा और रागी जैसे अनाज जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित होते हैं।
  • इन्हें बच्चों और महिलाओं के आहार में शामिल कर पोषण स्तर को सुधारा जा सकता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार

  • गरीब परिवारों को पोषण युक्त भोजन प्रदान करने के लिए पीडीएस में मोटे अनाजों को शामिल किया जाए।
  • इससे जलवायु-लचीली फसलों को बढ़ावा मिलेगा और धान जैसी पानी-प्रधान फसलों पर निर्भरता कम होगी।

जलवायु-लचीली कृषि

  • किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलें उगाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
  • पारंपरिक और जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाए।

महिला और बाल स्वास्थ्य पर ध्यान

  • संवेदनशील जिलों में बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष स्वास्थ्य अभियान चलाए जाएं।
  • स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में पोषण शिक्षा और जागरूकता बढ़ाई जाए।

दीर्घकालिक लाभ

  • पर्यावरण संरक्षण: मोटे अनाजों को बढ़ावा देने से पराली जलाने और प्रदूषण में कमी आएगी।
  • भूजल संरक्षण: जल की कम आवश्यकता वाली फसलों से भूजल स्तर स्थिर रहेगा।
  • बेहतर स्वास्थ्य: पोषण युक्त आहार से बच्चों और महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हर इंसान के जीवन पर पड़ रहा है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर दिख रहा है। यह समस्या सिर्फ सरकारों या वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी नहीं है; हर नागरिक को इसमें अपनी भागीदारी निभानी होगी।

भोजन में पोषक तत्वों की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास और नीतिगत बदलाव जरूरी हैं। जलवायु परिवर्तन के इस संकट को हल करना न केवल हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, बल्कि यह हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए अनिवार्य है।

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