भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया नया गैस सेंसर, जो हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड का पता लगाएगा

saurabh pandey
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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नई सफलता हासिल की है। उन्होंने एक ऐसा अत्याधुनिक गैस सेंसर विकसित किया है, जो वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के बेहद कम स्तर का भी सटीकता से पता लगा सकता है। यह सेंसर न केवल हानिकारक गैसों की पहचान करने में सक्षम है, बल्कि यह कमरे के सामान्य तापमान पर भी प्रभावी ढंग से काम करता है।

पर्यावरण और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए यह सेंसर खास तौर पर शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए अहम भूमिका निभा सकता है। इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षा में मदद मिलेगी, बल्कि औद्योगिक और स्वास्थ्य क्षेत्रों में भी इसका उपयोग किया जा सकेगा। यह गैस सेंसर उन प्रमुख तकनीकों में से एक है, जो पर्यावरण निगरानी के साथ-साथ औद्योगिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।

सेंसर की विशेषताएं और वैज्ञानिकों की चुनौतियां

वैज्ञानिकों का मुख्य उद्देश्य इस सेंसर को और अधिक संवेदनशील, सटीक और विभिन्न तापमानों पर काम करने योग्य बनाना था। हालांकि, सेंसर की संवेदनशीलता और स्थायित्व को बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री का चयन करना काफी चुनौतीपूर्ण था। सेंसर में उपयोग की जाने वाली सामग्री इसकी कार्यप्रणाली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

कैसे काम करता है यह सेंसर?

पिछले कुछ वर्षों में, वैज्ञानिकों ने ऐसे सेंसरों पर शोध किया है जो गैसों के उपस्थित होने पर सामग्री के प्रतिरोध में आए बदलावों के आधार पर काम करते हैं। सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS) के शोधकर्ताओं ने जिंक फेराइट नैनोस्ट्रक्चर पर आधारित इस नए गैस सेंसर को विकसित किया है। यह सेंसर नाइट्रोजन ऑक्साइड के बहुत कम स्तर का पता लगाने में सक्षम है और कमरे के तापमान पर भी सटीक परिणाम देता है। यह शोध कैमिकल इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग

सेंसर के विकास के दौरान वैज्ञानिकों ने एक्स-रे डिफ्रेक्शन (XRD), एक्स-रे फोटोइलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोस्कोपी (XPS) और फोरियर-ट्रांसफार्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (FTIR) जैसी तकनीकों का उपयोग किया। इन उन्नत तकनीकों की मदद से, वे नैनोसंरचना की संरचना को नियंत्रित कर पाए और इसे नाइट्रोजन ऑक्साइड का पता लगाने के लिए उपयुक्त बना दिया।

गैस सेंसिंग में बड़ा कदम

शोधकर्ताओं ने पाया कि यह सेंसर नाइट्रोजन ऑक्साइड के नौ पीपीबी (भाग प्रति अरब) तक के छोटे स्तर का भी पता लगा सकता है, जो अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) द्वारा निर्धारित 53 पीपीबी सीमा से बहुत कम है। इस सेंसर ने वाहन उत्सर्जन जैसी वास्तविक गैसों की सटीक निगरानी में भी सफल परीक्षण किए है।

सस्ती और सुलभ तकनीक

इस नए सेंसर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत कम ऊर्जा का उपयोग करता है, जिससे यह सस्ता और व्यापक रूप से उपयोग में लाने योग्य हो जाता है। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि यह सेंसर पर्यावरण निगरानी को अधिक किफायती बनाएगा और वायु प्रदूषण की सटीक निगरानी में मदद करेगा।यह नई खोज पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है, जो आने वाले समय में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक प्रभावी और सुलभ समाधान साबित हो सकती है।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह नया गैस सेंसर वायु गुणवत्ता की सटीक निगरानी में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे हानिकारक गैसों का बेहद कम स्तर पर भी पता लगाने की इसकी क्षमता, पर्यावरण और औद्योगिक सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

यह सेंसर न केवल सस्ता और ऊर्जा-संवेदनशील है, बल्कि यह कमरे के तापमान पर भी काम कर सकता है, जिससे इसका व्यापक उपयोग सुनिश्चित होता है।

इस सफलता से वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए अधिक किफायती और प्रभावी समाधान उपलब्ध होंगे, जो भविष्य में पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को नई दिशा देंगे।

source- down to earth

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