ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव केवल सतही जल स्रोतों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी की सतह के नीचे मौजूद जलभृतों को भी प्रभावित कर रहा है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि सदी के अंत तक लाखों लोग पानी की कमी का सामना कर सकते हैं, क्योंकि बढ़ते तापमान से भूजल के ज़हरीला होने का खतरा बढ़ गया है।
एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने बताया है कि ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न परिदृश्यों के तहत, सबसे खराब स्थिति में, 2100 तक लगभग 590 मिलियन लोग ऐसे जल स्रोतों पर निर्भर हो सकते हैं जो पीने योग्य पानी के कड़े मानकों को पूरा नहीं करेंगे। यह स्थिति तब उत्पन्न हो सकती है जब सतह के नीचे छिपे हुए जलाशयों का तापमान बढ़ता है, जिससे उनमें घुले हुए खनिज, प्रदूषक और संभावित रोगजनकों के स्तर में वृद्धि हो सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी गर्मी, बर्फ का पिघलना और समुद्र के बढ़ते स्तर पर नियमित चर्चा होती है, लेकिन भूजल पर इसके प्रभावों पर ध्यान कम ही दिया जाता है। विश्व की एक बड़ी आबादी जो पृथ्वी की सतह के नीचे जलभृतों पर निर्भर है, उन जलाशयों के प्रदूषित होने से गंभीर समस्याओं का सामना कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि भूजल के सिर्फ एक या दो डिग्री गर्म होने से ऑक्सीजन की कमी, खतरनाक बैक्टीरिया का विकास और भारी धातुओं जैसे आर्सेनिक और मैंगनीज का घुलने के स्तर में वृद्धि हो सकती है।
वर्तमान में, लगभग 30 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जहाँ भूजल पहले ही निर्धारित तापमान से अधिक गर्म हो चुका है, और इसका मतलब है कि वहाँ से पानी पीना सुरक्षित नहीं है। यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो अनुमानित 2100 तक 77 मिलियन से 188 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे होंगे जहाँ भूजल पीने के मानकों को पूरा नहीं करेगा।
इस गंभीर समस्या का सामना करने के लिए वैज्ञानिकों ने स्थायी समाधान खोजने की आवश्यकता की बात की है। भूजल की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि भविष्य में लाखों लोगों को जल संकट का सामना न करना पड़े।
source and data- दैनिक जागरण