सृष्टि के बाद विध्वंस और विध्वंस के बाद सृजन के बाद भी अज्ञानता और अशांति के बीच प्राणी स्वयं के अस्तित्व के प्रति अनजान ही रहा!
जीवन में कष्टों को देख सप्त ऋषि भी खिन्न थे इस असह्य स्थिति से कोई प्रसन्न न था!सप्त ऋषिगण कैलाश पहुंचे तो शिव ध्यानस्थ चेहरे पर निश्चल मुस्कान के साथ बैठे थे! “प्रभु, जीव व्याकुल है मात्र शरीर नहीं आत्मा को भी संतुष्टि और स्वस्थ बनाना जरूरी है! ”
शिव ने आंखे खोली, और कम शब्दों में रहस्य ज्ञान दिया उस ज्ञान का नाम था अष्टांग योग रहस्य जिससे हर मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बना सकता है! सप्तऋषियों को इसका गूढ़ रहस्य समझाया जिन्हें बाद में अष्टांग योग के रूप में जाना गया।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के सिद्धांतों को प्रचार प्रसार के लिए आदेश दिया!योग से शांति, संतुलन और आत्मज्ञान का मार्ग सुलभ हो जाता है ।
नृत्य भी योग है आदि योगी बताते चलें गए साथ ही डमरू बजा कर सप्त सुर हवा में छोड़ दिए, उमंग उल्लास की मंत्रमुग्ध ध्वनि से कुछ क्षण सम्मोहित हो गए नदिया ठिठक गई झरने बहक गए पशु पक्षियों के क्रियाकलाप सम्मोहित होकर कौतुहल में ऐसे बँध गए कि शिव को बताना पड़ा कि योग, संगीत केवल शारीरिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और ब्रह्मांड से प्रेम प्राप्त करने का मार्ग है। उन्होंने सिखाया कि योग के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति और शांति को जागृत कर सकता है।
अष्टांग योग दर्शन पतंजलि मुनि ने उसी तरह लोगों को समझाया जैसे माँ अबोध शिशु को स्तनपान कराती है । आठ तरीके सलीके से समझ एक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति करता हैं। यम अर्थात नैतिक अनुशासन अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जिनकी हर काल में आवश्यक है
दूसरा है, नियम जो आत्म-शुद्धि और धर्म यानि शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर पूजन सिखाता है!
तीसरा है आसन जैसे शारीरिक व्यायाम और क्रियाकलाप आज जिन्हें gym मे जा कर खोज रहे हैं!
चौथा प्राणायाम जो श्वास नियंत्रण सिखाता है!
पांचवां प्रत्याहार जो इंद्रियों का नियंत्रण ही है!
छठा है धारणा जो एकाग्रता का दूसरा नाम है!
सातवां रहस्य जो शिव अपनाते हैं ध्यान
ध्यानस्थ अवस्था को समाधि कह्ते है जो आठवीं अवस्था है आत्मसाक्षात्कार और परम शांति का अनुभव
आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में अष्टांग योग के सिद्धांतों का पालन करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो होता ही है यह न केवल शरीर को फिट और स्वस्थ बनाता है, बल्कि मन को शांति और स्थिरता भी प्रदान करता है। इसके अलावा, यह नैतिक और आत्मिक विकास में भी सहायक है, जिससे जीवन में संतोष और प्रसन्नता प्राप्त होती है।
Dr. Menka Tripathi
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