मानव शरीर की गर्मी सहन करने की सीमा: वैज्ञानिक प्रयोगशाला में परीक्षण शुरू

saurabh pandey
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गर्मी का प्रभाव मानव शरीर पर कितना खतरनाक हो सकता है? यह सवाल अब वैज्ञानिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और अत्यधिक गर्मी के थपेड़ों के बीच, वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि मानव शरीर कितनी गर्मी सहन कर सकता है और इससे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके लिए शोधकर्ता अत्याधुनिक जलवायु लैब का उपयोग कर रहे हैं, जो भविष्य की चरम गर्मी की स्थितियों का परीक्षण करने के लिए डिजाइन की गई है।

अत्यधिक गर्मी के परीक्षण के लिए नई प्रयोगशाला का निर्माण

2019 में, फिजियोलॉजिस्ट ओली जे ने एक ऐसा कक्ष डिजाइन करना शुरू किया, जो अत्यधिक गर्मी को सहन करने में सक्षम हो। इस कक्ष का निर्माण ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में हुआ है और इसे बनाने में 18 महीने लगे। अब, यह कक्ष वैज्ञानिकों को उन सीमाओं का परीक्षण करने में मदद कर रहा है, जहां मानव अस्तित्व को चुनौती मिलती है। सिडनी विश्वविद्यालय में गर्मी और स्वास्थ्य प्रयोगशाला का निर्देशन कर रहे जे का कहना है कि आज की परिस्थितियों में हम यह नहीं जानते कि अत्यधिक गर्मी लोगों पर क्या प्रभाव डालती है। इसलिए, सावधानीपूर्वक चिकित्सा परीक्षणों के माध्यम से मानव शरीर विज्ञान को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया जा रहा है।

गर्मी से निपटने के तरीके और शीतलन रणनीतियों का परीक्षण

शोधकर्ता यह भी जांच कर रहे हैं कि कौन सी शीतलन रणनीतियां सबसे अधिक प्रभावी साबित हो सकती हैं। विशेष रूप से, यह अध्ययन उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है जहां अत्यधिक गर्मी श्रमिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जैसे कि बांग्लादेश के कपड़ा कारखानों में। इन कारखानों में काम करने वाले लोग अक्सर अत्यधिक गर्म जलवायु में लंबे समय तक काम करते हैं, और वहां एयर कंडीशनिंग की भी बहुत कम पहुंच है। इसलिए, प्रभावी शीतलन रणनीतियों की खोज इस शोध का एक प्रमुख लक्ष्य है।

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गर्मी के प्रभाव

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है, मौसम की रिपोर्टों में चिलचिलाती धूप और अत्यधिक गर्मी आम होती जा रही है। हाल ही में, दुनिया ने सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड दो बार तोड़ा है, और संयुक्त राष्ट्र ने अत्यधिक गर्मी के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया है। वर्तमान में, वैश्विक कार्यबल का लगभग 70 प्रतिशत यानी 2.4 अरब लोग अत्यधिक गर्मी का सामना कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों की चेतावनी और सुधार की आवश्यकता

हालांकि, उच्च तापमान से निपटने के तरीके के बारे में जारी सार्वजनिक चेतावनियां अक्सर प्रभावी नहीं होती हैं। पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के फिजियोलॉजिस्ट लैरी केनी के अनुसार, यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं की गर्मी संबंधी सलाहों में कई कमियां हैं। जे का कहना है कि मनुष्यों के लिए ताप सीमा को गलत तरीके से परिभाषित किया गया है, और यह आंशिक रूप से इसलिए है क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य निकायों ने 2010 में प्रकाशित एक सैद्धांतिक अध्ययन पर अत्यधिक भरोसा किया है।

मानव अस्तित्व की सीमा और भविष्य की चुनौतियां

2010 के अध्ययन ने “वेट-बल्ब तापमान” (डब्ल्यूबीटी) का उपयोग कर 35 डिग्री सेल्सियस को मानव अस्तित्व की सीमा के रूप में परिभाषित किया था। उस सीमा पर, शरीर का आंतरिक तापमान अनियंत्रित रूप से बढ़ जाएगा, लेकिन यह मॉडल वास्तविक दुनिया की स्थितियों को पूरी तरह से नहीं दर्शाता। इसलिए, इस नए शोध का उद्देश्य वास्तविक दुनिया में मानव शरीर की प्रतिक्रिया को बेहतर ढंग से समझना और उस पर आधारित शीतलन रणनीतियों को विकसित करना है।

गर्मी का प्रभाव अब वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिंता बन गया है, और इसके लिए अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं का उपयोग किया जा रहा है। यह शोध हमें यह समझने में मदद करेगा कि भविष्य में अत्यधिक गर्मी के प्रभाव से कैसे निपटा जा सकता है, और यह मानव अस्तित्व की सीमाओं को परिभाषित करने के साथ-साथ जीवन बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

source- down to earth

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