प्रदूषित वायु में रहने के लिए लोग मजबूर हैं। साफ हवा बड़ी मुश्किल से कुछ दिनों के लिए ही मिल पा रही है। इसका असर जहां बड़े बुजुर्गों में होता है, वहीं ये नवजातों और बच्चों को भी प्रभावित करते हैं। शोध में सामने आया है कि अगर लंबे समय तक छोटे बच्चे प्रदूषित वायु के संपर्क में रहते हैं तो उनमें मानसिक विकार का भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने गर्भ में पल रहे बच्चे, नवजात और किशोरावस्था के दौरान बच्चों के वायु और ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में आने के दीर्घकालिक प्रभावों की जांच की। इस दौरान पाया गया कि लगातार इनके संपर्क में रहने के कारण चिंता, अवसाद और मानसिकिक समस्या पैदा हो सकती है। ब्रिटेन के ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि पीएम 2.5 प्रदूषक कण में प्रत्येक 0.72 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से गर्भ में पल रहे बच्चे में मानसिकिकता का खतरा 11 प्रतिशत बढ़ जाता है, जबकि अवसाद का खतरा 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। बचपन के दौरान समान जोखिम के लिए, मानसिकिकता की संभावना नौ प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यह निष्कर्ष द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन नेटवर्क में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में कहा गया कि यह बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि वायु प्रदूषण अब आम समस्या बन गई है और वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की दर बढ़ रही है। ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक जोनाथन न्यूज़ोम ने कहा कि प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पन्न होने वाले क्षेत्र में सुधार के साथ मानसिकिक स्वास्थ्य में सुधार होने की संभावना होती है।
कम उम्र से प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से मानसिक विकारों का खतरा हो सकता है। लेख के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
प्रदूषित वायु का संपर्क: लोग प्रदूषित वायु में रहने के लिए मजबूर हैं और स्वच्छ हवा कुछ दिनों के लिए भी मुश्किल से मिल रही है। इसका प्रभाव जहाँ बड़े बुजुर्गों में होता है, वहीं नवजातों और बच्चों को भी प्रभावित करता है।
शोध के निष्कर्ष: अध्ययनों से सामने आया है कि अगर लंबे समय तक छोटे बच्चे प्रदूषित वायु के संपर्क में रहते हैं तो उनमें मानसिक विकार का भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। पाया गया कि पीएम 2.5 प्रदूषक कण में प्रत्येक 0.72 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से गर्भ में पल रहे बच्चे में मानसिक विकृति का खतरा 11 प्रतिशत बढ़ जाता है, जबकि अवसाद का खतरा 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
बच्चों और किशोरों पर प्रभाव: बचपन और किशोरावस्था के दौरान लगातार प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने के कारण चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
वैज्ञानिक साक्ष्य: यह शोध ब्रिटेन के ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था, जिन्होंने गर्भावस्था, नवजात और किशोरावस्था के दौरान बच्चों पर वायु और ध्वनि प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों की जांच की।
प्रकाशन: यह निष्कर्ष “द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) नेटवर्क” में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में कहा गया है कि यह बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि वायु प्रदूषण अब आम समस्या बन गई है और वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की दर बढ़ रही है।
विशेषज्ञों की राय: ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक जोनाथन न्यूज़ोम ने कहा कि प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए विशेष रूप से प्रदूषित क्षेत्रों में सुधार करने की संभावना होती है।
लेख इस बात पर जोर देता है कि स्वच्छ हवा की तत्काल आवश्यकता है और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रदूषण को कम करना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से बच्चों और संवेदनशील आबादी के लिए।