नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एनएसयूटी) ने हाइड्रोपोनिक बागवानी के माध्यम से फसलों के साथ-साथ बिजली उत्पन्न करने की एक अनोखी परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में करीब 709 वर्ग मीटर के क्षेत्र में 231 मेगावाट प्रति क्यूबिक मीटर बिजली उत्पन्न की जा रही है। यह दिल्ली में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है और फिलहाल प्रायोगिक चरण में है। इस परियोजना के सफल होने पर इसे और व्यापक रूप से लागू किया जाएगा।
प्रोजेक्ट की विशेषताएँ
इस परियोजना के माध्यम से बिजली उत्पन्न करने के लिए बायोकेमिकल रिएक्शन का उपयोग किया जा रहा है। यह तकनीक प्लांट माइक्रोबियल फ्यूल सेल (पीएमएफसी) पर आधारित है, जिसमें पौधों और बैक्टीरिया के बीच संबंध को साझा करके सूर्य के प्रकाश को बिजली में बदला जाता है। पौधे अपनी कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत उपयोग करते हैं, जबकि 60 प्रतिशत ऊर्जा बच जाती है, जिसे बिजली में बदलने के लिए उपयोग किया जाता है।
दो नए कोर्स
एनएसयूटी ने इस परियोजना को सफल बनाने के लिए दो नए कोर्स शुरू किए हैं:
- स्नातक स्तर पर हाइड्रोपोनिक्स प्रौद्योगिकी
- स्नातकोत्तर स्तर पर पर्यावरण इंजीनियरिंग कोर्स
ये कोर्स न केवल छात्रों बल्कि उभरते उद्यमियों और स्थानीय किसानों के लिए भी इंटर्नशिप और सर्टिफिकेट प्रोग्राम के रूप में पेश किए जाएंगे। हाइड्रोपोनिक्स प्रशिक्षण और अनुसंधान केंद्र सतत कृषि और उद्यमशीलता विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
बायो इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन की प्रक्रिया
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से पौधे भोजन तैयार करते हैं, जिसमें वे करीब 40 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करते हैं और 60 प्रतिशत ऊर्जा जड़ों के आसपास चली जाती है। इस 60 प्रतिशत ऊर्जा को उपयोगी बनाने के लिए ऐसे बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है, जो इस ऊर्जा को तोड़ सकें। इससे निकलने वाले इलेक्ट्रॉन का उपयोग पीएमएफसी में किया जाता है।
शोध और विकास
इस परियोजना का उद्देश्य बागवानी शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देना है। इसके जरिए न केवल किसानों को बल्कि उद्यमियों को भी लाभ मिलेगा। अब तक पीएमएफसी के माध्यम से करीब 1200 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इस तकनीक का उपयोग यहां लगे बल्बों को रोशन करने में किया जा रहा है और इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए निरंतर शोध किया जा रहा है।
फसल उत्पादन
वर्तमान में इस परियोजना में सब्जियां, औषधीय पौधे, फूल वाले पौधे, हरी पत्तेदार सब्जियां और गेहूं जैसी फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। इस तकनीक के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र को साफ रखने में भी मदद मिल रही है।
डॉ. अखिलेश दुबे, सहायक प्रोफेसर, एनएसयूटी ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती के तरीकों पर भी निरंतर शोध और विकास किया जा रहा है। इस तकनीक के माध्यम से फसल उत्पादन किफायती हो रहा है और इससे पर्यावरण को भी लाभ मिल रहा है।
Source and data – अमर उजाला समाचार पत्र